The Game of Just Like That
Reminiscences from my diary
Sunday, Sep 24, 2023
0100 IST
Murugeshpalya, Bangalore
हो यूँ कभी कि
मेरी हथेलियों की धमनियों में
लाल हो जाए नील
नाखूनों में ठहरें
कई कई चाँद
लकीरों में टूटें
तारे यहाँ वहाँ ..
.. तुम रोपों
मन्नतें
फिर ढूँढो अक्स पानी का
आसमान में
लुढ़क जाए सूरज
तुम छिपा लो उसको
कोटर में आम की ..
.. और चिकुटी काटो मुझे
माँगो मुझसे
गोधूलि में ओस
एक टूटी नाव
और ढेर सारा काश
मैं भर दूँ तुम्हारा बस्ता
बिन पते की चिट्ठियों से ..
.. हो यूँ कभी कि
खेल खेल में रखें हम
हथेली पर हथेली
ओक पर ओक
और रह जाए एक
बस एक
ब्रह्माण्ड ..
..
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