Saturday, 23 September 2023

The Game of Just Like That

Reminiscences from my diary

Sunday, Sep 24, 2023
0100 IST 
Murugeshpalya, Bangalore

हो यूँ कभी कि 
मेरी हथेलियों की धमनियों में 
लाल हो जाए नील 
नाखूनों में ठहरें 
कई कई चाँद 
लकीरों में टूटें 
तारे यहाँ वहाँ  .. 

.. तुम रोपों
 मन्नतें 
फिर ढूँढो अक्स पानी का
आसमान में 
लुढ़क जाए सूरज 
तुम छिपा लो उसको 
कोटर में आम की  .. 

.. और चिकुटी काटो मुझे 
माँगो मुझसे 
गोधूलि में ओस 
एक टूटी नाव 
और ढेर सारा काश
मैं भर दूँ तुम्हारा बस्ता 
बिन पते की चिट्ठियों से  .. 

.. हो यूँ कभी कि 
खेल खेल में रखें हम 
हथेली पर हथेली 
ओक पर ओक
और रह जाए एक 
बस एक 
ब्रह्माण्ड  .. 

.. 



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