You sure you know how to love?
Reminiscences from my diary
Sep 06, 2023 Wednesday
2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore
सुनो!
.
.
.
कभी जन्माष्टमी की बारिश में
तर हुए हो?
चेरापूँजी के आसमान में
ढूँढे हो पूरा चाँद?
ताके हो कोई समंदर पहरों-पहर
बिना पाँव भिगोए?
या गिनो हो कभी अपनी छत पर बिखरे
कबूतरों के पंख?
कड़ी धूप नापे हो
रानीखेत के ओर-छोर?
उगाए हो नीलगिरि के फूल
अपनी बाल्कनी, अपने आँगन?
बिताए हो पूरी साँझ बिना चूँ किए
अरविन्द की इमली के नीचे?
भटके हो दिल्ली, लन्दन, जापान
खाली आँखें, खाली मन, खाली मुस्कान?
सुनो हो लूप पर कोई गाना या धुन
१००८ बार या उससे भी ज़्यादा?
मुराकामी पढ़ते-पढ़ते
फ़फ़ककर रोए हो?
या उठे हो कभी आधी रात गहरी नींद से
और पलटने लगे हो तस्लीमा?
चलती सड़क गिरे गुलमोहरों को
जेब में भरे हो?
हथेलियों में रोपे हो
काँटे?
पिए हो, जिए हो साँस-साँस
अपनी पीड़?
साईं को एकटक देखते-देखते
बुद्ध बने हो कभी?
नशा किये हो
अपना?
.
.
.
सुनो मियाँ!
अगर ये सब नहीं किये हो
तो क्या ख़ाक इश्क़ किये हो?!
No comments:
Post a Comment