One Fine Day
Reminiscences from my diary
Friday 1900 IST
Murugeshpalya, Bangalore
एक दिन
उग आएँगे चाँद पर
सतपुड़ा के जंगल
झींगुर टिमटिमाएँगे
सावन गाएँगे जुगनू
एक दिन
घुल जाएगा सूरज लौ में
शमी के आस-पास कहीं
रात में खिलेंगे
कई-कई धनक
एक दिन
मछलियाँ खेलेंगीं
पोषम-पा और
गौरैया के नीड़ होंगे
समंदर
एक दिन
स्वयं बुद्ध खोजेंगे
सुजाता
मृत्युंजय डमरू छोड़
छेड़ेंगे बाँसुरी
एक दिन
किरदार सभी शिवानी के
किताबों से बाहर आ जाएँगे
और सभी चिट्ठियाँ
पहुँच जाएँगी सही पतों पर
एक दिन
भर जाएगी ओक तुम्हारी
हरसिंगार से
ठहरेगा तुम्हारी आँख में
मेरी आँख का पानी
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