Yet Another Moon-Sonata
Reminiscences from my diary
May 13, 2024
Monday 2315 IST
Murugeshpalya, Bangalore
कल रात
मैं जागृति से निकला ही था जब -
मैत्रैयी ने पूछा अचानक -
"आज का चाँद देखा?"
मैंने खुद से कहा -
"मैंने तो कब से चाँद नहीं देखा"
एक ज़ुस्तज़ू सी उठी
एक बेचैनी
और मैं -
बस - स्टैंड के पास
फुटपाथ पर खड़ा
उचक - उचक
ढूँढने लगा
ऊँची बालकनियों के पीछे
तितर - बितर आसमान में
एक टुकड़ा चाँद
बौराया जान
पलट - पलट देखने लगे थे लोग
बीड़ी फूँकता आदमी
सवारी खोजता ऑटो
बस का इंतज़ार करती लड़की
जूस पीते बच्चे
और फिर अचानक से दिख ही गया
खूबसूरत
बेहद खूबसूरत
अचूक सफ़ेद
अर्धगोलाकार
मानो प्रकार से खींचा गया
आधे से थोड़ा कम
चाँद
मुझे यूँ लगा कि
साँस को
साँस मिली हो
जैसे मिला हो बेतरतीब अरमानों को
एक ठौर, एक सराय
बहुत देर तक मुस्कुराता रहा
वहीँ खड़ा - खड़ा
सींचता रहा
कतरा - कतरा सुकून
सुनो -
तुम भी
देख पाओ तो
ज़रूर देखना -
गुज़रा कल
और
गुज़रे कल का
आधा चाँद !
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