Monday, 6 May 2024

The salvation in your palms

Reminiscences from my diary

May 06, 2024
Monday 2045 IST
Murugeshpalya, Bangalore


सपना ही रहा होगा शायद 

जहाँ तक नज़र दौड़ाऊँ 
बर्फ़ ही बर्फ़
पानी में तैरती  
आसमान से गिरती 
ज़मीन पर ठहरती 
बर्फ़ 
इतनी बर्फ़ कि 
पाँव धँस - धँस जाएँ 
कुछ नज़र न आए 
चारों मौसम मानो 
शीत
कई कई शीतों की 
मन-मन बर्फ़ 
आँख लाल 
कान लाल 
नाक लाल 
साँस लाल 
होंठ सफ़ेद 

मैं बर्फ़ -
हो ही रहा था कि 
अचानक 
तुमने अपनी 
हथेलियों की ओक 
मेरी 
हथेलियों के नीचे 
रख दी 

सपना ही रहा हो
ऐसा ज़रूरी नहीं 

तुम्हारी आँच 
मेरी धमनियों का 
कैवल्य है 



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