The salvation in your palms
Reminiscences from my diary
May 06, 2024
Monday 2045 IST
Murugeshpalya, Bangalore
सपना ही रहा होगा शायद
जहाँ तक नज़र दौड़ाऊँ
बर्फ़ ही बर्फ़
पानी में तैरती
आसमान से गिरती
ज़मीन पर ठहरती
बर्फ़
इतनी बर्फ़ कि
पाँव धँस - धँस जाएँ
कुछ नज़र न आए
चारों मौसम मानो
शीत
कई कई शीतों की
मन-मन बर्फ़
आँख लाल
कान लाल
नाक लाल
साँस लाल
होंठ सफ़ेद
मैं बर्फ़ -
हो ही रहा था कि
अचानक
तुमने अपनी
हथेलियों की ओक
मेरी
हथेलियों के नीचे
रख दी
सपना ही रहा हो
ऐसा ज़रूरी नहीं
तुम्हारी आँच
मेरी धमनियों का
कैवल्य है
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