Pondicherry & My Melancholy
Reminiscences from my diary
Tuesday, Oct 08, 2024
2100 IST
Murugeshpalya, Bangalore
कबीर की मछलियाँ
मछलियों की
बूँद-बूँद प्यास
रेत के बनते - ढहते घर
ढहते दरवाज़े, खिड़कियाँ
और छत
नारियल के कुछ हरे
कुछ सूखे
पेड़ों का झुरमुट
पानी के साथ आते
पानी में ही लौट जाते
टुकड़े-टुकड़े सीपी और शंख
डूबते सूरज का
कुछ लाल, कुछ पीला ओढ़े
एक बेचारा झुटपुटा
चुप में बँधे दो हाथ
दूर तक चलते चले जाते
चार पाँव
दूर
बहुत दूर जाती
एक अकेली नाव
न सीपी, न नाव
न पेड़, न पाँव
एक किनारा ऐसा भी
मेरी उदासी समुद्र का समुद्र होना है !
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