Tuesday 15 October 2024

My address, eternal

Reminiscences from my diary

October 15, 2024
Tuesday, 2200 IST
Murugeshpalya, Bangalore


सफ़ेद चौखम्बा
और 
प्रशांत महासगार 
के बीच 

बुराँश के पेड़ों से घिरा 
रंग-बिरंगी दूब का 
एक मैदान है 

यहाँ ऐसे ही किसी का आ जाना वर्जित है 

यह मैदान पता है 
उनका 
जो 

गुनगुनाते हैं पुरवाई के गीत हर मौसम 
पीते हैं अंजुली-अंजुली बारिश 
लिखते हैं बिन पते की चिट्ठियाँ 
फूलों की क्यारियों से चुनते हैं कबूतरों के बिखरे पंख
कविताओं के हिस्से न आये शब्दों की पीड़ा सहलाते हैं 
रोते-रोते कर लेते हैं अन्न को ग्रहण
हर विरह हर रुस्वाई को काँच पर चलकर जीते हैं 
पाकर खोने के दुःख को सुन्न होकर आसमान-सा ओढ़ते हैं 
अनवरत प्रतीक्षा में बाँध देते हैं चौखट-चौखट आँखें, कतरा-कतरा हूक 
और फिर साध लेते हैं मौन हर गोधूलि
गहन स्वप्नों में आँकते हैं प्रेमी और प्रेम
हर साँस, साँस खोजते हैं 
रूमी ढूँढ़ते हैं हद तक, और हो जाते हैं शम्स-शम्स 

यह वही मैदान है 
जहाँ 
कल्पों से आँख मूँदे 
तथागत भी 
कभी-कभी यूँ ही 
रो पड़ते हैं 


No comments:

Post a Comment