My Nani
Reminiscences from my diary
Oct 23, 2024
Wednesday, 2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore
नानी
सिर्फ़ माँ की माँ नहीं होती
नानी होती है
हरी अलमारी में छिपाए -
चौलाई के लड्डू
दलिए की गर्म कटोरी में -
पिघलता गुड़
हैंडपंप से भरी गयी -
पानी की तीसरी बाल्टी
पौ फटने पर आँगन बुहारती -
सींक वाली झाड़ू
काँस के पतीले में रात भर भीगते राजमा का -
बचा-कुचा पानी
वह होती है -
एक बेटे की सिकुड़ी टाई के सल निकालती -
लोहे की भारी इस्त्री
दूसरी बेटी के तेल से चुपड़े बालों में -
गुंथा हुआ लाल रिबन
छोटे नाती के कम होते जेब-खर्च में -
चुपचाप से जुड़ता पचास का नोट
बड़ी पोती की बेस्वाद चाय में पड़ती -
चुटकी भर दालचीनी
नाना की एक आवाज़ पर ठुमकती-ठुमकती
एक प्यारी गुड़िया
और नानी होती है
पूस की धूप का निवाच
रातरानी की बिखरी गंध
तकिये पर सिमटी नींद
कहानियों की खोई परी
किताबों में सहेजे बुकमार्क्स
एक दिन अचानक
माँ की माँ का
होने से न हो जाना
माँ के होने और
माँ के न होने के बीच की दीवार में
दरीचें चिन जाता है
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