Friends on the terrace, Reminiscences - 3
Reminiscences from my diary
Jan 6, 2011
8 PM
A 118, Thapar, Patiala
सर्दी की गुनगुनाती शाम में -
छत पर -
जियोग्राफी में -
सवाना पढ़ते पढ़ते -
जब शॉल में लिपटी नज़र -
अनायास ही पड़ गयी थी -
सामने की अटारी पर चढ़ी -
उस लड़की पर -
आठ नौ साल की थी शायद -
जो कितनी मासूमियत से -
अपने पड़ोसी हमउम्र दोस्त से -
बतिया रही थी …
और … उधर ,
उधर -
शाम की बढ़ती सर्दी से ठिठुरता सूरज -
भागा जा रहा था -
अपना रक्त फैलाता हुआ !
मेरी एक नज़र वहाँ ठहर गयी थी -
उस जोड़े पर -
उस बचपन पर -
उस अटारी पर … !
शायद आज भी -
मुझे इंतज़ार रहता है -
उस नज़र का !
वो नज़र , वो शाम -
- फिर से पाना चाहता हूँ !
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