Scattered!
Reminiscences from my diary
December 20, 2015
Sunday
2:00 AM
बोझिल -सा दिन था, बोझिल - सी सिलवटें -
कि इधर उधर बिखरे -से कुछ ख्याल -
खिड़की से झांकते दिखाई दिए !
सीली - सी शब थी -
हाथ में कॉफ़ी का मग -
साहिर की याद में लिखी अमृता की कुछ नज़्में -
और तेरा ख्याल !
फिर एक भोर थी -
कमरे में घुसने की कोशिश करती धूप -
अधमुंदी आँखों पर तकिया -
और तेरा ख्याल !
अजनबी मुस्कुराहटें -
चेहरों में गुम होती भीड़ -
और तेरा ख्याल !
शिव की आरती -
शंखनाद और घंटियाँ -
एक, पूजा की थाली , और दूसरा -
तेरा ख्याल !
दिसंबर की कुछ गहरी कपकपाहटें -
अंगीठी में चटकते कच्चे कोयले -
बराबर में रखी खाली कुर्सी -
और तेरा ख्याल !
ख्यालों में गुम होते और ख्याल -
और फिर खिड़की से झाँकते कुछ नए ख्याल -
पर काश कभी कुछ यूँ सा होता -
कोई ख्याल ऐसा होता -
जो बस एक ख्याल -सा होता !
जो बस एक ख्याल -सा होता !
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