Dream to Dawn!
Reminiscences from my diaryMay 29, 2015
Friday, 01:00 AM
Murugeshpalya, Bangalore
बीती रात का वह स्वप्न -
- न जाने किस लोक से -
- कौन दिशा से आकर -
अँधेरे कमरे में, नींद खोजती -
- आँखों में,
- समा गया ...
और, कुछ ऐसा समाया कि -
मेरा खण्ड - खण्ड बिखरा अस्तित्व -
- एक ही क्षण में सिमटकर -
- दीप्तिमान हो गया !
ऐसा लगा, मानो -
सैकड़ों युगों से पल रही -
- तेरे न होने की कसक को -
- उस एक पहर में -
तृप्ति मिल गयी हो !
मानो -
हर आलय का शिव -
अपने कोपभवन से -
लौट आया हो,
और मुद्दत बाद -
उसके अधरों पर -
मुस्कान बिखरी हो !
पता नहीं,
महज़ इत्तेफ़ाक़ था -
- या कुछ और,
सुबह तेज़ बारिश हो रही थी -
और,
खिड़की की टूटी जाली से -
बूँद - बूँद दबे पाँव आता-
- सलिल -
- मुझे एक बार फिर उठा रहा था ...
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