... and it's passing, without you!
Reminiscences from my diary
June 29, 2016
Wednesday, 10 PM
Murugeshpalya, Bangalore
मौसम आये , मौसम जाए -
पर तुम न लौट के आये -
उमरिया यूँ ही बीती जाए ...
चितवन चीखे , बरसों बीते -
पर तुम न दरस दिखाए !
मन मेरा मगन, मुझे तेरी लगन -
कल्पों की अगन जलाए !
उमरिया यूँ ही बीती जाए ...
साँझ सवेरे, सब कुछ भूले -
तू क्यों न बिसराए !
सलिल से सीला रोम - रोम -
बन अलाव दहकाए !
उमरिया यूँ ही बीती जाए ...
नंदन फूँके , मधुबन लूटे -
नीरस निर्जन बन जाए !
मरु न मेघ न श्याम श्वेत -
न धनक ही रंग भर पाए !
उमरिया यूँ ही बीती जाए ...
रतिया जागूँ , तारे ताकूँ -
पवन तुझ तक ले जाए !
हर तारा एक किस्सा तेरा -
नभ भी पूरा नप जाए !
उमरिया यूँ ही बीती जाए ...
मौसम आये , मौसम जाए -
पर तुम न लौट के आये -
उमरिया यूँ ही बीती जाए ...
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