The Universal Conspiracies
Reminiscences from my diary
June 07, 2020
Sunday, 10:45 pm
Murugeshpalya, Bangalore
कितना सहज होता है
महज़ एक प्रतिबिम्ब का
यूँ ही, अनायास -
एक समूचे अस्तित्व को
स्वयं में समेट लेना !
उतना सहज नहीं होता
एक अस्तित्व का
अपना यथार्थ बचाने के लिए
बिन कारण ढाँपते
बिम्ब से लड़ पाना !
विचित्र द्वंद्व है
कब कौन जीता
कब किसकी हार हुई
जो जीता, क्या वह वास्तव में विजयी हुआ
जो हारा, वह चिर - श्रापित क्यों रहा
नक्षत्र ही जानें !
आप और मैं यदि जानते
या जान पाते
तो
चन्द्रमा को ही
हमेशा
ग्रहण लगने का
उलाहना न देते !
Brilliantly written :)
ReplyDeleteThank you. :)
DeleteNot accustomed to getting comments here. Sorry for reverting too late. :)