Thursday, 3 December 2020

The New Moon

Reminiscences from my diary

Dec 03, 2020
Thursday, 11:15 pm
Murugeshpalya, Bangalore


मैं यूँ ही 
बिना वजह 
एकटक 
देखे जा रहा था चाँद को !
शायद 
चाँद भी 
यूँ ही 
बिना वजह 
देखे जा रहा था मुझे !
बीच - बीच में 
यूँ ही 
बिना वजह 
मुस्कुरा उठते थे हम दोनों ही 
शायद !

फिर 
निदाघ की एक साँझ 
अचानक ही 
बिना वजह 
उतर आयी आँख में !

तुमने 
अपनी बंद मुट्ठी 
मेरी हथेलियों की ओक पर 
पलट दी थी 
यूँ ही !

"यह रहा आज की रात का चाँद - तुम्हारा"
"मेरा ???"
"हाँ ! रखो ! तुम्हारा हुआ!"

हँसते हँसते बौरा गए थे 
हम दोनों या तीनों ही !

सुनो! सुन रहे हो तो !
सच कहो !
ठिठोली की थी न !
मैं बूझ चूका हूँ !

अमावस की रात भी चाँद खिला करते हैं भला ?


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