The poor clock!
Reminiscences from my diary
Dec 28, 2020
Monday, 10:20 pm
Murugeshpalya, Bangalore
एक घड़ी है
आम - सी
और चूँकि आम - सी है
उसे आम घड़ियों की ही तरह
चलते रहना चाहिए
अनवरत !
कुछ पत्थर हैं
या यूँ कह लीजिये
कंकण हैं
महीन - महीन
पर ऐसे कि
जीना मुहाल कर दें
जैसे पथरी !
घड़ी ठीक से चल नहीं पाती
जब तब
भटक जाती है
अटक जाती है
पग-पग पत्थर-पत्थर
मानो
उचटी नियति
जब तब
मुट्ठी भरती है
और बिखरा देती है
बालू, बजरी, कंकण !
सुनो !
ऐसे ही, एक बार
कतरा कतरा
कंकण कंकण
बना था
एक हिमालय !
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