Wednesday, 9 December 2020

The creeping of the silence!

Reminiscences from my diary

Dec 09, 2020
Wednesday, 10:45 pm
Murugeshpalya, Bangalore

सन्नाटा !
आसमान जितना सन्नाटा !
बीहड़ में कल्पों से पलते किसी मकड़जाल में -
दम ठहरने के बाद जैसा सन्नाटा !

जितना सन्नाटा, उतना ही कोलाहल !
जितना कोलाहल, उतना मौन !
जितना मौन, उतने शब्द !
जितने शब्द, उतने घाव !
जितने घाव, उतने धागे !
जितने धागे, उतनी टीस !
जितनी टीस, उतने पतझड़ !
जितने पतझड़, उतने सावन !
जितने सावन, उतना नीर !
जितना नीर, उतनी स्मृतियाँ !
जितनी स्मृतियाँ, उतना ही सन्नाटा !

कांसे के प्याले पर धुंध-सी बहती धुन के -
अचानक बिखरने के बाद जैसा सन्नाटा !
आसमान जितना सन्नाटा !
सन्नाटा !

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