O, my dear friend!
Reminiscences from my diary
Jan 01, 2021
Friday, 10:55 pm
Murugeshpalya, Bangalore
सुनो !
आज उदास लग रहे हो तुम
बहुत उदास !
मानो, तुम -
तुम नहीं !
कल तो कितना खिल रहे थे
खिला रहे थे !
क्या हुआ अचानक ?
मुझे बताओ !
मैं भी तो सब कुछ कहता हूँ तुमसे !
कल रात तो तुमने -
कितनी ही आतिशबाजी देखी होगी
कितने ही रंग
कितनी ही रोशनी
कितनी ही चमक
कितना ही उल्लास
कितनी ही आशाएँ !
शाम से ही झूम रहे थे तुम तो, कल !
फिर क्या हुआ ?
बेचैन क्यों दिख रहे हो ?
तुम तो जानते हो, कितनी ही आँखें -
तुमसे उजास पाती हैं !
यूँ दिखोगे तो कितनी ही बेबसी -
ठहर जाएगी उनमें !
है न ?
मुझे लग रहा है -
मेरी फितरत का भूत चढ़ गया है तुम्हारे सिर
और यह तो ठीक बात नहीं है !
अब सुनो, चुपचाप !
चाहते हो 'गर तुम -
मैं न करूँ शिव से शिकायत तुम्हारी, तो -
एक लम्बी साँस लो
झटको यह चोला, और -
वैसे ही हो जाओ, जैसे हो तुम !
फबती नहीं है तुम पर उदासी !
न जाने कितने ही कवि
तुम्हारे तुम होने की राह में
अपनी कलम बिछाए बैठे होंगे !
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