अक्षरधाम
Reminiscences from my diary
Nov 03, 2023
Friday, 2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore
जेठ की तपन
उतरती तेज़ धूप
ठंडे चितकबरे फ़र्श
ठंडी लाल दीवारें
पग के पीछे पग
साये में उलझता साया
लम्बे तंग गलियारे
सहमी सुन्दर नक्काशियाँ
झरोखों की लड़ी
रोशनी और आँख-मिचौनी
बहते पसीनों पर
फव्वारों की फुहारें
**
उस ढलते पहर में
ब्रह्मा - विष्णु - शिव की
संरचनाओं के बीच
घुल गयी थी कुछ कुछ
तुम्हारी गमक
कुछ कुछ तुम्हारा नाम
और
एक चाँद
अब मेरी शामें उस एक -
- साँझ की चुकती किस्तें हैं !
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