I crave to meet me!
Reminiscences from my diary
January 19, 2014 Sunday
11:00 PM
Murugeshpalya, Bangalore
मलंग होने को जी चाहा आज -
क्यों … नहीं जानता !
कहाँ … यह भी नहीं पता !
बस चाहा -
खो जाऊं कहीं -
अपनी ही रूह में !
गुम हो जाऊँ -
अपने ही ज़हन में !
रंग जाऊँ -
अपने ही रंग में !
मलंग!
मलंग …
न मीरा - सा -
न रूमी - सा -
न ही हीर - सा !
डूबूँ , तो फिर -
- स्वयं में डूबूँ -
और ऐसे डूबूँ -
- कि फिर किसी और समंदर की -
- चाह न रहे !
हो जाऊँ ज़ार - ज़ार -
अपने ही तारों से !
जलूँ तो जलूँ -
- अपनी ही आग में …
दहक भी मैं , मैं ही पतंगा -
और, हवा में उड़ती राख भी मैं !
और , अगर बदलूँ -
तो फिर सलिल - सा !
मिल जाऊँ अपने ही किसी रूप में -
अपने में ही डूबता -
फिर अपने ही किनारे तरता -
बहता -
गुज़रता -
मलंग … !
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