You never return as you had left
Reminiscences from my diary
Nov 17, 2022
Thursday, 11:15 pm
Murugeshpalya, Bangalore
यह कितनी अजीब बात है न ... कि एक दिन आप अचानक एक अनजान रूह के लिए कुछ नहीं से सब कुछ हो जाते हैं और फिर अचानक से ही उस अमुक व्यक्ति के लिए आप सब कुछ से बहुत कुछ, फिर थोड़ा कुछ होते होते 'कुछ नहीं' (कुछ भी नहीं) हो जाते हैं !
यह प्रक्रिया बिना आवाज़ होती है, और इतनी अकस्मात् होती है कि आप बस बूझते रह जाते हैं कि अरे!! यह क्या कब क्यों कैसे हुआ ? ऐसा भी होता है, या हो सकता है भला ? जैसे कोई आपका रूहदार आपकी उँगली पकड़ ज़िद करके सीधे - सादे गाँव से एक महानगर ले आया हो और एक कोलाहल भरे अस्त - व्यस्त चौराहे पर आपका हाथ छोड़ गायब हो गया हो ... बिलकुल गायब ... जैसे कभी था ही नहीं ... और आप ?? आप एकदम सुन्न .. बदहवास ... पत्थर ! पथराई आँखें ! पथराई साँसें ! आपके चारों ओर शोर ही शोर ! लोग देख रहे हैं, हँस रहे हैं, चिल्ला रहे हैं, गालियाँ दे रहे हैं, तरस खा रहे हैं, धक्का दे दे आगे बढ़ रहे हैं ...
और जब कभी आप होश में आते हैं (यदि आ पाए तो !) तो खुद को समझाने की कोशिश करते हैं कि ठीक ही तो है! जहाँ से साहचर्य की यात्रा आरम्भ हुई थी, वहीँ पर वापिस आ गए ... कि यही तो जीवन - चक्र है ... वगैरह वगैरह ... ! पर माफ़ कीजिये ! मैं इस तर्क से सहमत नहीं हो पाता ! आप इसे चक्र कह ही नहीं सकते ! चक्र तो एक वृत्त होता है, हर बिंदु एक समान! पर आप चाहकर भी एक अनजान व्यक्ति को फिर से अजनबी नहीं बना सकते ! किसी बहुत अपने के लिए, किसी हमदर्द के लिए 'कुछ नहीं' हो जाने की पीड़ अजर होती है ! आप शिव भी नहीं जो इस पीड़ा का गरल सरलता से पी जाएँ !
आप जब लौटते हैं, या यूँ कहिये कि जब आपको लौटाया जाता है तो पहले जैसा कुछ नहीं रह जाता ! आपके अंदर सब कुछ बदल जाता है, टूट जाता है, छूट जाता है ! आप आकाश से भर जाते हैं ! आप चाहकर भी हँस नहीं पाते ! आप न चाहते हुए भी रो नहीं पाते ! आप समय को कोसते हैं ! समय आपको कोसता है ! पर आप चाहकर भी उस व्यक्ति को कोस नहीं पाते जिसने कभी अपनी लकीरों को आपके इर्द - गिर्द बुनना शुरू किया था और फिर अचानक से ही सारा ताम - झाम समेट उन्हें मिटा दिया !
बेचारे आप !
आपकी साँसें तो उन्हीं लकीरों में अटकी रह गयीं थीं !
वापसी में आती है बिन श्वास की एक जीवित काया ...
नहीं ... जीवित नहीं ...
वापसी में आती है बिन श्वास की एक अधमरी काया ...
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