Thursday, 23 January 2020

अमृता के कुछ सपने ~

(1)
रात आधी बीती होगी
थकी - हारी
नींद को मनाती आँखें
अचानक व्याकुल हो उठीं

कहीं से आवाज़ आई -
"अरे, अभी खटिया पर पड़ी हो !
उठो ! बहुत दूर जाना है
आकाश गंगा को तैरकर जाना है !"

मैं हैरान होकर बोली -
"मैं तैरना नहीं जानती,
पर ले चलो,
तो आकाश गंगा में डूबना चाहूँगी !"

एक ख़ामोशी - हल्की हँसी
"नहीं, डूबना नहीं, तैरना है  ...
मैं हूँ न  ..."

और फिर जहाँ तक कान पहुँचते थे
एक बाँसुरी की आवाज़ आती रही  ..."

***

(2)
एक अजीब घटना थी -
कि सारा दिन घर से धूप और
अगरबत्तियों की खुशबू आती रही -
जिस कमरे में जाऊँ; खुशबू थी -
हालाँकि कहीं कोई अगरबत्ती नहीं जली हुई थी !
हैरान होकर अपना बदन सूंघा -
सारे बदन से वह महक आ रही थी  ...

सारा दिन यह आलम रहा -
पर संध्या होते ही यह महक खोने लगी -
इमरोज़ को भी यह बताने से झिझक गई
कि वह हँस देंगे  ...

***

(3)
जैसे एक साया - सा देखा -
कि एक जगह शिव धूनी सेक रहे हैं -
मैं बाईं तरफ़ उनके पास बैठी हूँ -
और दाईं तरफ़ पार्वती नृत्य कर रही हैं  ...

***

(4)
अभी गुज़रती रात में देखा -
कोई तीन बच्चे आए -
एक - सी सूरत लिए,
हँसते - हँसते -
उनके हाथों में फूलों का
एक - एक गजरा था -
वे तीनों गजरे मेरे पैरों को बाँध गए  ...

सुबह काका श्री का टेलीफोन आया
मैं हैरान - सी बैठी थी -
रात की घटना सुनाई -
वह हँस दिए -
वे ब्रह्मा, विष्णु, महेश थे
... हैरान - सी बैठी हूँ  ...

***

(5)
देखा -
सामने साईं खड़े हैं -
मैंने उनके मस्तक पर तिलक लगाया
लम्बी दिशा का, वर्टिकल !
साईं उसी तरह खड़े रहे  ...
फिर देखा -
कोई हाथ नहीं था -
पर मेरे मस्तक पर उसी तरह का तिलक
लगा हुआ था, लम्बी दिशा का -
ख़ुदाया ! तेरी तू जाने !
मैं नहीं जानती  ...

***


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