Friday, 24 January 2020

The wounds of the silence


Reminiscences from my diary

Jan 24, 2020
Friday, 07.00 pm
Murugeshpalya, Bangalore

एक बात बताऊँ तुम्हें?

यहाँ अचानक से काम करते-करते
एक बार फिर
मेरा मौन, मुझ पर
हावी हो रहा है ...
झटपटा रहा है
रोना चाहता है
चीखना चाहता है
चिल्लाना चाहता है
फटना चाहता है
मिटना चाहता है...
पर तुम ही कहो -
ऐसे कैसे इजाज़त दे दूँ इसे!

आखि़र मैंने खुद भी तो -
कितनी ही बार चाहा है
अपने मौन में डूबना, और -
कितनी ही बार -
इसने मुझे तारा है!
कितनी ही दफ़ा -
मेरे चारों ओर
मकड़जाल-से कोलाहल में
मेरे मौन ने मुझे -
कैवल्य-सा सुकून दिया है!

खुद को खुद से अलग करना
इतना आसान थोड़े ही है!

यूँ भी,
मैं जितनी कोशिश करता हूँ -
अपने मौन को कम करने की
इसे सहलाने की
इसे बहलाने की
इससे बतियाने की
इसका विस्तार, उतना ही-
बढ़ता चला जाता है!

जब कभी
गाहे बगाहे
मुस्कराहट दस्तक देती है
तो न जाने
कहाँ से बहकर
मेरा मौन
मेरे अधरों पर
मेरी आँखों में
टिक बैठता है, और न जाने -
किस दिशा में, किस काल में
ले जा पटकता है मुझे!

लोग पूछते हैं, ठिठोली करते हैं -
अरे! क्या हुआ अचानक?
और मैं -
कुछ नहीं कह पाता!
शब्द बाँध देता है वह!
मुझे बाँध देता है वह !
एक अजीब - सी थकान का -
आलम रहता है हर घड़ी!

मैं पहरों पहर ठूँठ - सा जीता हूँ!
मैं पहरों पहर ठूँठ - सा मरता हूँ!

सुनो! तुम मेरे मूक मौन की आवाज़ बनोगे क्या?

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