Thursday, 23 January 2020

अमृता की कविताएँ  (4/8)

अमृता प्रीतम

एक दर्द था -
जो सिगरेट की तरह
मैंने चुपचाप पिया है
सिर्फ़ कुछ नज़्में हैं -
जो सिगरेट से मैंने
राख की तरह झाड़ी हैं  ...!

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