Monday 26 May 2014

I yearn for you, sky!


Reminiscences from my diary ...
January 3, 2012
750, IISc, Bangalore


एक कतरा आसमान छूने की तमन्ना ,
अक्सर मचल - सी  जाती है -
बौराई बयार जब कहीं से -
- कोई जानी - अनजानी - सी महक ले आती है !

फिर सोचता हूँ ,
इन बैरी बादलों की भीड़ कैसे पार करूँ !
लोग  इन्हें  अपना कहते हैं,
पर, मैं इनसे कैसे इतना प्यार करूँ !

जब सोचते -सोचते अचेतन हो जाता हूँ -
और, मुझे देखकर आसमान भी दुःखी हो जाता है ,
तब थक हारकर फिर से , हाँ, फिर से …
मुझे अक्षरों का सेतु नज़र आता है !

यही चाह रहती है ... काश!  ये तो ले जाएँ मुझे -
- उस एक कतरे के पास  …
जो है कई इंद्रधनुषों से परे -
- सात समुंदर पार !

वहां  …
… जहाँ सिर्फ 'मैं' हूँ ,
न कोई बंधन , न कोई राग !
न कोई दीवाली , न फाग !

पर सेतु बनाते - बनाते,
डर - सा लगने लगता है !
या फिर बेचैनी !
अगर ये अक्षर उड़ चले तो !
या फिर, सात समुन्दर में डूब  गए तो !
बादलों की भीड़ में  खो गए तो !

फिर  …
फिर क्या होगा !!
पर फिर मैं और मेरा मानस एक - दूसरे को  समझाते  हैं !
यदि अक्षर भी साथ नहीं रुकेंगे , तो भी   …
मेरे पास रह जाएगी -
मेरी आधी सी -
अधूरी - सी -
एक कतरा आसमान छूने की तमन्ना   … !