Wednesday 14 February 2024

बसंत पंचमी 

Reminiscences from my diary
Feb 14, 2024 Wednesday, 2340 IST
Murugeshpalya, Bangalore


बचपन से ही आज का दिन मुझे बहुत हसीन लगता है, अजीबोग़रीब सुकून भरा ! ऐसा क्यों - यह मैं बूझे नहीं बूझ पाता ! बस कुछ चमक होती है, कुछ मुस्कुराहट, कुछ कसक, कुछ बौराहट!  

मुझे अपना स्कूल याद आता है 
आधे दिन की छुट्टी याद आती है 
स्कूल - वैन याद आती है 
वैन में बजते रवींद्र जैन के गाने याद आते हैं 

आज भोर होते ही बालकनी में आया। नज़र भर भर देखने लगा बोगेनविलिआ के गुलाबी गुच्छों को, अपनी हथेलियों में भरने लगा सूखे पुदीने की गमक !

मुझे पुराने घर की छत याद आती है 
पलस्तर झड़ती दीवारें याद आती हैं 
एलो वीरा, सदाबहार के गमले याद आते हैं
उनके पास हजामत करते, ऐनक लगाए बाबा याद आते हैं

गुजराती ननिहाल होने पर भी मुझे पतंग उड़ाना नहीं आ पाया। इस बात का हालाँकि कोई मलाल नहीं कि मलाल करने को पिटारे में और भी वीराने हैं। 

मुझे अपना घंटों आसमान देखना याद आता है 
मुझे मेरी उँगलियों से गुज़रते मांझे याद आते हैं 
दिन भर में अकेले लूटी पाँच-छः पतंगें याद आती हैं 
इस लूट का अपने साथ जश्न मनाना याद आता है 

आज के दिन मेरा शून्य अक़्सर कई शून्यों से भर जाता है। मेरी नज़र किस शून्य को टक-टक एकटक ताकती है, मैं नहीं जानता, जानने की कोशिश भी नहीं करता। हवा में तैरती मिलती है एक ज़ुस्तज़ू !

मुझे पीला कुर्ता याद आता है 
सरस्वती के आगे दीया जलाना याद आता है 
दीया-बाती के बाद की खूबसूरत साँझ याद आती हैं 
मुझे एक ख़ाक़ हुआ दोस्त याद आता है 

Saturday 10 February 2024

A Synonym of Death

Reminiscences from my diary

Feb 11, 2024
Sunday 0124 IST
Murugeshpalya, Bangalore


एक तारा था 
एक रात अचानक
टूटा  
और फिर 
धीरे - धीरे
मर गया 

एक तारा था 
मर गया एक रात 
यूँ ही 
और फिर 
टुकड़ा - टुकड़ा 
टूट गया 

मरना 
और
टूटना 
पर्याय नहीं लगते

न लगना
न होना तो नहीं