The Mystic Panorama...
Monday 8 February 2021
The lives, parallel, and the lines!
Reminiscences from my diary
Feb 08, 2021
Monday, 10:15 pm
Murugeshpalya, Bangalore
समानांतर
सरल
रेखाएँ
चाहे
दूर
हों
या
समीप
या
बहुत
समीप
...
...
...
कभी
नहीं
मिलतीं
.
.
.
Thursday 4 February 2021
You came! You stayed!
Reminiscences from my diary
Feb 4, 2021
Thursday 11 pm
Murugeshpalya, Bangalore
उस दोपहरी
तुम्हारा आना
क्लांत मरु में घिर आया हो
नागार्जुन का बादल
टुक - टुक टुकरती आँख में ठहर जाए
शरद का चाँद
पूस की रात में दूर कहीं दिख जाए
एक अलाव
बीजी की ईदी
बाबा के किस्से
उस साँझ
तुम्हारा जाना
मुद्दत से भागती सड़क पर
पसरे अचानक एक सन्नाटा
खाली घर के खाली कोने
भर जाएँ किसी गूँज से
मसली जाए
बसंत में खिलती कली
रात बरसाती बने
रुदाली
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