Monday 22 June 2020

Maurya


Reminiscences from my diary

June 23, 2020
Tuesday, 00:30 hrs
Murugeshpalya, Bangalore


याद है, कैसे वह पूरा दिन
झल्लाहट में बीता था तुम्हारा
और तुम्हें देख - देख मेरा ?
तकदीर दिन की ख़राब थी या तुम्हारी -
आज भी बूझता हूँ जब सोचता हूँ ...

उस दिन इतने सालों में
पहली बार
तुम्हारा गुस्सा देखा
कैसे तुम्हें भरे ऑडिटोरियम में
बाहर निकल जाने को कहा गया था !
कैसे तुम पैर पटककर
गाली देते हुए
एकदम चले भी गए थे ...

अपने को पहले पत्थर, फिर -
पत्ते - सा काँपते हुए पाया था
दस ही मिनट में, मैं भी -
सब छोड़ - छाड़कर
तुम्हें ढूँढने निकल पड़ा था ...

तुम अपने कमरे में आ गए थे
कुछ शांत
कुछ भरे हुए
जो हुआ, क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ
उसका ज़िक्र न तुमने किया
न मैंने ...

तुम्हें कुछ देर अकेला छोड़ना सही रहेगा
यह सोचकर
मैं अपने कमरे में आ गया था
पर
तुम तो ठहरे तुम
कब ठहरे मेरे बिना
दस ही मिनट में -
तुम मेरे दरवाज़े पर 
ग्यारहवे मिनट में -
मेरे बिस्तर पर
चौकड़ी मार, ऐनक चढ़ा -
बिना कुछ कहे
अपना लैपटॉप खोल
काम करने में हो गए थे मशगूल ...

मैं हैरान, हमेशा की तरह
कैसे तुम -
अपने अंदर के झंझानल को
इतनी आसानी से
बिसरा गए थे ...

मुझे पता नहीं क्या सूझा था
उस एक पल -
अपने मिट्टी के रंगों को
ज़मीन पर फैलाकर
अचानक से ही -
चूने की दीवार पर
कुछ उकेरना शुरु कर दिया था
कैसे तो सारे हाथ, कपड़े, चेहरा
सब रंग - रंग हो गए थे
मानो -
हुसैन का भूत उतर आया हो अंदर मेरे ...

लगभग डेढ़ घंटे तक साँस नहीं ली थी मैंने
लगभग डेढ़ घंटे तक तुम्हें देखा तक नहीं था मैंने
तुमने भी कुछ नहीं कहा, बल्कि -
गाने चला दिये थे !

गाने चलते रहे
दीवार रंगती रही
तुम भी हैरान
मैं भी हैरान
ढलता सूरज भी हैरान ...

हमने पाया, हमारे सामने -
बिखरे रंगों के बीच
हर तरह के रंगों से रंगे
एक पाँव पर नाचते
अपने में ही डूबे
गणपति !
मैंने पूछा - क्या नाम दूँ ?
फट से तुम्हारे मुँह से निकला था -
मौर्या  ...

कैसे तुम खुली आँखों से देखते रहे
कभी मुझे
कभी मौर्या को !
कैसे तुमने अचानक से
बिस्तर पर ही खड़े-खड़े
मुझे गले लगा लिया था !
कैसे सुबह से भूखे हमने
कमरे में ही एक साथ
रात का खाना छककर खाया था !

उस रात -
मौर्या ने तुमसे साँसें पाईं थीं ...

साल - दर - साल
उस पर, चूने की -
न जाने कितनी ही परतें चढ़ गईं होंगी ...

आज सब दफ़न है !
वह दिन दफ़न
वह शाम दफ़न
तुम दफ़न !
जाते - जाते, काश तुम -
बता ही जाते
उखड़ी उधड़ी साँसों में जीते
मौर्या की -
और
मौर्या को रंगने वाले की -
मुक्ति का कोई उपाय !



Tuesday 16 June 2020

The parrot

Reminiscences from my diary

June 16, 2020
Tuesday 11:30 pm
Murugeshpalya, Bangalore


तुम्हारी श्वास के लिए
मेरा दर्श
मानो -
किसी चंद्रकांता का
शुक !

विधान पलटा !

इस बार
पहले
श्वास गई
फिर शुक !

Sunday 7 June 2020

The Universal Conspiracies


Reminiscences from my diary

June 07, 2020
Sunday, 10:45 pm
Murugeshpalya, Bangalore


कितना सहज होता है
महज़ एक प्रतिबिम्ब का
यूँ ही, अनायास -
एक समूचे अस्तित्व को
स्वयं में समेट लेना !

उतना सहज नहीं होता
एक अस्तित्व का
अपना यथार्थ बचाने के लिए
बिन कारण ढाँपते
बिम्ब से लड़ पाना !

विचित्र द्वंद्व है
कब कौन जीता
कब किसकी हार हुई
जो जीता, क्या वह वास्तव में विजयी हुआ
जो हारा, वह चिर - श्रापित क्यों रहा
नक्षत्र ही जानें !

आप और मैं यदि जानते
या जान पाते
तो
चन्द्रमा को ही
हमेशा
ग्रहण लगने का
उलाहना न देते !

Friday 5 June 2020

Eclipsed!


Reminiscences from my diary

June 05, 2020
Friday, 11:30 pm
Murugeshpalya, Bangalore


सुनो !
तुम आज सुन्दर दिख रहे हो
बहुत ही ज़्यादा सुन्दर
शांत, श्वेत, उज्जवल
प्रकार से खींचा एक अचूक वृत्त !

तुम्हारे ऐसे रूप पर
मेरा रोम - रोम बलिहारी
मेरा पल - पल न्योछावर
मैं ही नहीं -
छितरी - बिखरी - मचली -
घटाएँ
खुशबुएँ
हवाएँ
सभी बौराये हुए हैं -
तुम्हारे सलोनेपन पर !

कोई जादू, कोई मन्त्र फूँका है क्या आज ?
है न ?
सच कहो तो ज़रा !

आज अभी कुछ ही देर में
तुम्हें
मेरी धरती, अपनी छाया से -
ढक देगी !
ऐसा लोग कह रहे हैं !
जानते हो तुम ?

मुझे यह ख़्याल कई बार कौंधा जाता है -
कैसा लगता होगा तुम्हें
जब - जब
तुम्हें
ग्रहण लगता है !
चिंता - आक्रोश - भय - शोक - ग्लानि - पीड़ा - कसक ?
क्या ?
और क्यों ?
तुम्हारा क्या दोष ?
अगर कुछ महसूस होना ही है तो
पृथ्वी को हो !

किंवदंती चंद्र - ग्रहण की नहीं
पृथ्वी - ग्रहण की होनी चाहिए !
है न ?
मुझे पता है, तुम -
आज का कल होने की
राह तक रहे हो !
कल तुम मुक्त हो जाओगे
फिर से
शापित से श्रापहीन !
फिर से
शांत, श्वेत, उज्जवल
अपने में ही डूबे हुए !

जानते हो ?
ऐसे ही, एक बार -
मुझे भी
ग्रहण लगा था !
जानते हो ?
मैं, आज तक भी -
नहीं बूझ पाया
अपनी मुक्ति का कोई उपाय !