Tuesday 5 December 2023

Kashmir Diaries, Day 01

Dec 02, 2023, Saturday
2050 IST
Dal Lake, Srinagar

हाउसबोट की बाल्कनी में बैठा हूँ। एक सुन्दर नीरवता चारों ओर। बीच - बीच में कोई शिकारा पास से गुज़रता है तो लहरें चहचहा उठती हैं। जहाँ बैठा हूँ, वहाँ से साफ़ - साफ़ पहाड़ की चोटी पर शंकराचार्य मंदिर दिख रहा है। शाहिद बता रहा था, वहाँ से पूरा श्रीनगर, और काफ़ी सारा पीर-पंजाल भी दिखता है। कल या परसो जाऊँगा। 

अभी भी याद कर रहा हूँ दो घंटे पहले के उस मंज़र को। दिल्ली से जहाज ने कब उड़ान भरी, हमेशा की ही तरह मुझे पता नहीं चला, और जब आँख खुली तो खिड़की के बाहर सफ़ेद चोटियों से घिरा एक तालाब था। मज़े की बात तब हुई जब जगे हुए लोग भी कयास लगाने लगे कि ये बादल हैं या कोई तालाब !

कम्कम्पाती सर्दी  ... दूर दूर तक पानी में मचलता सन्नाटा  ... दिसंबर का महीना  ... !

आँखें मूँदूँ तो पानी  ... आँखें खोलूँ तो पानी  ... !!

Friday 17 November 2023

सप्तर्षि 

Reminiscences from my diary
Nov 17, 2023, Friday
2030 IST
Murugeshpalya, Bangalore


क्या
किसी के दुःखों को 
मन से 
मन में आश्रय देना 
संसार की सबसे सुन्दर
अभिव्यक्ति 
कही जा सकती है ?

क्या 
स्मरण - शक्ति के 
समाप्त होने पर 
स्मृतियाँ विलुप्त होने पर 
एक लेखक 
लेखक
रह जाएगा?

क्या 
रात्रि के
किसी गहन पहर 
अनायास नयनों का
असीम झरना 
रोप सकता है 
एक नया धुला प्रभात ?

क्या 
किसी का जाते हुए 
पीछे छुटी 
हथेलियों की ओक
गुलाब से भर देना 
विरह की पीड़ा 
कम कर सकता है ?

क्या 
मौन साधने से
तथागत,
मैत्रेय 
और सुजाता -
तीनों 
सध जाते हैं ?

क्या
मूक प्रार्थनाओं के 
अवशेष 
और उनकी ऊष्मा 
एक कविता का 
सृजन 
कर सकते हैं ?

क्या 
मृत्तकों के समान 
अनुत्तरित प्रश्न भी 
गंगा से होते हुए 
ब्रह्माण्ड के
तारे बन
टिमटिमाते हैं ?



Wednesday 15 November 2023

The Evening Harsingars

Reminiscences from my diary

Nov 15, 2023
Wednesday, 2235 IST
Murugeshpalya, Bangalore

एक बार
यूँ ही पारिजात - सा 
माना था तुम्हें 

जब माना था
जाना नहीं था
महज़ मानना भी हो सकता है 
हो जाना 
हो ही जाना 

अब न फूल 
अब न तुम 

है तो बस 
उतरा हुआ 
सिन्दूरी
मेरे नाखूनों पर 
ठहरा हुआ 
गहरा हुआ 

पारिजात - सा होना 
रोग है 

पारिजात होना 
जोग !




 

Monday 6 November 2023

Rains, incessant the

Reminiscences from my diary

Nov 06, 2023
Monday, 2230 IST
Murugeshpalya, Bangalore

शिउली की
गंध में मगन मूसलाधार
पानी कुछ यूँ 
बरस रहा है कि 
डबडबाई नींद का हर 
टुकड़ा 
तालाब हुआ जाए 
तालाब की
काई में कई कई 
रतजगे
हर रात का एक
चाँद 
हर चाँद की एक
आह और हर 
आह से फट जाए 
बादल का एक 
टुकड़ा 

बरसात 
मूसलाधार बरसात 



Friday 3 November 2023

अक्षरधाम 

Reminiscences from my diary

Nov 03, 2023
Friday, 2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore


जेठ की तपन
उतरती तेज़ धूप 
ठंडे चितकबरे फ़र्श
ठंडी लाल दीवारें 

पग के पीछे पग 
साये में उलझता साया 

लम्बे तंग गलियारे 
सहमी सुन्दर नक्काशियाँ 
झरोखों की लड़ी 
रोशनी और आँख-मिचौनी 

बहते पसीनों पर 
फव्वारों की फुहारें 

**

उस ढलते पहर में 
ब्रह्मा - विष्णु - शिव की
संरचनाओं के बीच 
घुल गयी थी कुछ कुछ
तुम्हारी गमक
कुछ कुछ तुम्हारा नाम 
और
एक चाँद

अब मेरी शामें उस एक -
 - साँझ की चुकती किस्तें हैं !

Saturday 23 September 2023

Once upon an evening; once upon a night

Reminiscences from my diary
Sunday, Sep 24, 2023
0200 IST
Murugeshpalya, Bangalore


मैंने एक शाम अरब सागर में
बहुत दूर जाती नौका को
बहुत देर तक ताका था 

मैंने एक ठिठुरती रात
सीले बुझते कोयलों की खुशबू को 
पहरों पहर पिया था 

मैंने एक शाम बितायी थी 
कई किताबघरों में पर फिर भी 
नहीं बन पाया था कोई कहानी 

मैंने एक रात पढ़ी थीं कई कविताएँ 
उलझा रहा था नींद और सपनों तक 
विस्थापना की आव-तानी में 

मैंने एक शाम चलना शुरू किया था 
चुप्पियों से बने पुल पर 
फिर पुल बन गया था खाई 

मैंने एक रात अमृता की नज़्मों में 
टाँक दिए थे यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ 
पारिजात ही पारिजात 

मैंने एक शाम दीया-बाती पर रोपा था 
एक बीज प्रार्थना का
दिसंबर हो जाए अंतर्धान 

मैंने एक रात सलिल से सींची थी 
लौटने की संभावनाओं को 
इति करनी की समीधा 



The Game of Just Like That

Reminiscences from my diary

Sunday, Sep 24, 2023
0100 IST 
Murugeshpalya, Bangalore

हो यूँ कभी कि 
मेरी हथेलियों की धमनियों में 
लाल हो जाए नील 
नाखूनों में ठहरें 
कई कई चाँद 
लकीरों में टूटें 
तारे यहाँ वहाँ  .. 

.. तुम रोपों
 मन्नतें 
फिर ढूँढो अक्स पानी का
आसमान में 
लुढ़क जाए सूरज 
तुम छिपा लो उसको 
कोटर में आम की  .. 

.. और चिकुटी काटो मुझे 
माँगो मुझसे 
गोधूलि में ओस 
एक टूटी नाव 
और ढेर सारा काश
मैं भर दूँ तुम्हारा बस्ता 
बिन पते की चिट्ठियों से  .. 

.. हो यूँ कभी कि 
खेल खेल में रखें हम 
हथेली पर हथेली 
ओक पर ओक
और रह जाए एक 
बस एक 
ब्रह्माण्ड  .. 

.. 



Wednesday 6 September 2023

You sure you know how to love?


Reminiscences from my diary

Sep 06, 2023 Wednesday
2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore


सुनो!
कभी जन्माष्टमी की बारिश में 
तर हुए हो?

चेरापूँजी के आसमान में 
ढूँढे हो पूरा चाँद?

ताके हो कोई समंदर पहरों-पहर 
बिना पाँव भिगोए?

या गिनो हो कभी अपनी छत पर बिखरे 
कबूतरों के पंख?

कड़ी धूप नापे हो 
रानीखेत के ओर-छोर?

उगाए हो नीलगिरि के फूल 
अपनी बाल्कनी, अपने आँगन?

बिताए हो पूरी साँझ बिना चूँ किए 
अरविन्द की इमली के नीचे?

भटके हो दिल्ली, लन्दन, जापान 
खाली आँखें, खाली मन, खाली मुस्कान?

सुनो हो लूप पर कोई गाना या धुन
१००८ बार या उससे भी ज़्यादा?

मुराकामी पढ़ते-पढ़ते
फ़फ़ककर रोए हो?

या उठे हो कभी आधी रात गहरी नींद से
और पलटने लगे हो तस्लीमा?

चलती सड़क गिरे गुलमोहरों को 
जेब में भरे हो?

हथेलियों में रोपे हो 
काँटे?

पिए हो, जिए हो साँस-साँस 
अपनी पीड़?

साईं को एकटक देखते-देखते
बुद्ध बने हो कभी?

नशा किये हो 
अपना?
.

सुनो मियाँ!
अगर ये सब नहीं किये हो 
तो क्या ख़ाक इश्क़ किये हो?!

 

Friday 1 September 2023

One Fine Day

Reminiscences from my diary
Friday 1900 IST
Murugeshpalya, Bangalore


एक दिन

उग आएँगे चाँद पर 
सतपुड़ा के जंगल  
झींगुर टिमटिमाएँगे 
सावन गाएँगे जुगनू 

एक दिन 

घुल जाएगा सूरज लौ में 
शमी के आस-पास कहीं 
रात में खिलेंगे 
कई-कई धनक

एक दिन 

मछलियाँ खेलेंगीं 
पोषम-पा और 
गौरैया के नीड़ होंगे
समंदर 

एक दिन 

स्वयं बुद्ध खोजेंगे 
सुजाता
मृत्युंजय डमरू छोड़
छेड़ेंगे बाँसुरी 

एक दिन 

किरदार सभी शिवानी के 
किताबों से बाहर आ जाएँगे 
और सभी चिट्ठियाँ
पहुँच जाएँगी सही पतों पर 

एक दिन 

भर जाएगी ओक तुम्हारी 
हरसिंगार से
ठहरेगा तुम्हारी आँख में 
मेरी आँख का पानी 


Tuesday 22 August 2023

The five elements

Reminiscences from my diary
Aug 22, 2023
Tuesday, 2215 IST
Murugeshpalya, Bangalore


मेरा आकाश -
जल से -
मथा है 
जल -
अग्नि से -
जला हुआ 
अग्नि में -
पृथ्वी -
समीधा - सी 
मेरी पृथ्वी -
पृथ्वी होने का -
भ्रम है 
जैसे -
किसी नक्षत्र की -
वायु, और 
व्यान के शून्य में -
शिव होता -
मेरा आकाश 

मैं और मेरे पंचतत्त्व 
ब्रह्माण्ड की समस्त प्रेतात्माओं का 
प्रपंच हैं !

Monday 21 August 2023

Fireflies on my skin!


Reminiscences from my diary

Aug 21, 2023
Monday 2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore


किसी-किसी शाम 
                    मेरी देह पर 
कहीं-कहीं से आकर 
                     रुक-रुक जाते हैं
कई-कई जुगनू 
                

जुगनू-जुगनू 
          कोई भूली तारीख़
जुगनू-जुगनू
          कोई बिसरा चेहरा 
ताकूँ टुकुर-टुकुर 


घुल-घुल जाएँ रोशनियाँ 
                    और उनकी सरगम                             
साँस-साँस में 
                आस-आस में 
टिमटिम-टिमटिम 


जब-जब करूँ 
             कोशिश छूने की     
कुछ-कुछ हवा 
                कुछ-कुछ पानी 
जुगनू बन जाए बुलबुला 
                   

मेरी देह पर 
            देह नहीं दिखती 
रेशा-रेशा पानी का ज़ख़्म 
                            ज़ख़्म से रिसती 
धीमी-धीमी आँच    
                
                      


Friday 16 June 2023

Whenever you come..

Reminiscences from my diary

June 16, 2023
Friday 2015 IST
Murugeshpalya, Bangalore


आने को तो कोई भी 
कभी भी
कहीं भी 

कैसे भी 
आए पर तू
आना यूँ
 
जैसे 
मूसलाधार बरसात को देख 
झरते हैं 

आँसू 
जैसे 
धमकता है धनक 

गीली धूप ओढ़े 
जैसे 
फ़ाल्गुन से छनती 

टेसू की महक 
जैसे 
बियाबाँ मोहल्ले में अचानक 

बजी हो साँकल 
जैसे 
चलते-चलते टकराए 

भूला बिसरा चेहरा 
जैसे 
चीरापुंजी के आसमान में 

पूरा का पूरा चाँद 
जैसे 
किसी अधूरी कविता से झड़ा 

एक-आधा खोया छंद  
जैसे 
एक रात लद जाता है ठूँठ 

सौ-सौ हरसिंगार से 
जैसे 
बीस साल पुरानी किताब में मिल जाए 

किसी सफ़र का टिकट
हाँ! तू - 
ऐसे ही, यूँ ही, आ जाना 

जैसे 
बुद्ध को बुद्ध बनाने आयी थी
एक सुजाता 


Thursday 1 June 2023

Disconnected strings

Reminiscences from my diary
May 27, 2023
Saturday 12 noon
Yogisthaan, Indiranagar


एक 
चुभन है 
कहीं अटकी हुई

रानीखेत के 
चीड़
पीछा करते हैं

सपने 
सुबह होते ही 
किसी ब्लैक होल में खो जाते हैं

चाँद को लिखा
ख़त 
ग्रहण की चेक-पोस्ट पर अटका है

एक ज़िद्दी नाम 
मेरे आसमान का 
ध्रुव है

अमृता की ख़ुमारी में 
शिव का 
वास है

गंगा के तीर में 
गंगा 
नहीं होती

आँख 
न भोर, न रात, बस 
गोधूलि हुई जाती हैं 

नुक्कड़ों पर 
इंतज़ार 
ठहरा हुआ है

प्रेम 
मन में ठहरा 
हठी किराएदार है


Friday 12 May 2023

Boundaries

Reminiscences from my diary

May 12, 2023
Friday 2200 IST
Murugeshpalya, Bangalore

काँच पर गिरी 
टप्प से 
बूँद पहली !

बूँद ने बनाया 
अपने चारों ओर 
दायरा एक !

बारीक़ छीटों की नक़्क़ाशी से बुना 
खूबसूरत दायरा !

और फिर अचानक 
बूँद 
खुद ही 
दायरे को पार कर 
एक ओर लुढ़क गयी !

आसमान 
अभी भी 
दायरे के बीचों बीच 
काँच में 
अपना अक्स खोज रहा है !


Tuesday 9 May 2023

Listen Jinesh!

Reminiscences from my diary

May 09, 2023
Tuesday 2100 IST
Murugeshpalya, Bangalore

सुनो जिनेश मडप्पल्ली !
मुझे याद है -

निलंबित  ... 

तुमने कहा था कि 
तुमसे कोई मिलने नहीं आता
पर एक रोज़, एक -
इमली का पेड़ आया था !

सुनो जिनेश मडप्पल्ली !
क्या तुम -
मुझे -
उस इमली के पेड़ का 
ठौर - ठिकाना बताओगे?

मैं -
उसके पते तक -
अपना पता पहुँचना चाहता हूँ !

Friday 14 April 2023

Ranikhet Diaries, Day 06

Reminiscences from my diary

April 11, 2023
Tuesday, 2115 IST
Tara, Kalika, Ranikhet

यूँ तो मैंने सोचा था आज कहीं नहीं जाऊँगा, पर जब आनंद जी ने कहा कि वह अल्मोड़ा जा रहे हैं किसी काम से, और अगर मैं चाहूँ वह मुझे सूर्य मंदिर छोड़ सकते हैं, तो मैं खुद को रोक नहीं पाया। उमंग पहुँचकर त्रिशूल और चारखम्बा देखता रहा , धूप सकता रहा और उनका इंतज़ार करता रहा। साढ़े दस बजे हम निकले। रानीखेत - अल्मोड़ा का रास्ता आसान नहीं लगा।  काफ़ी हेयर-पिन मोड़ थे। आँखों के सामने हरे पहाड़, भूरे  पहाड़, सफ़ेद पहाड़ ! 

सूर्य मंदिर का पूरा नाम है कटारमल सूर्य मंदिर ! किम्वदंती है कि कत्यूरी वंश का यह मंदिर लगभग ग्यारह सौ साल पुराना है और इसको एक रात में बनाया गया था ! मंदिर का शिखर आज भी अपूर्ण है क्योंकि बनाते-बनाते भोर हो गयी थी। बीच में ही क्यों छोड़ दिया, कोई नहीं जानता ! मंदिर एक पहाड़ की चोटी पर है और प्रांगण में मुख्य मंदिर के अलावा लगभग पैंतालीस छोटे छोटे मंदिर भी हैं। सामने पूरा अल्मोड़ा दिखता है। 

बहुत चिलचिलाती धूप थी। मंदिर परिसर में ज़रा सी छाँव ढूंढकर काफी देर वहाँ बैठा रहा। यहाँ की धूप और हवा कैलासा की दो आँखें, और मेरी दो आँखों में कैलासा की छवि !

मंदिर की पहाड़ी से नीचे आकर एक जगह पहाड़ी थाली खाई - रोटी, मोटे चावल, आलू के गट्टे, भट्टे की दाल, भाँग की चटनी ! ऐसा नहीं कि  बहुत अच्छी लगी पर चूँकि सुबह से कुछ नहीं खाया था, इसलिए अच्छे से पेट भर खाया। 

फिर शुरू हुआ रोमांच  .. 

आनंद जी को अल्मोड़ा से वापसी करने में अभी भी दो घंटे थे। खुद ही चलता हूँ। यह सोचकर कि इतनी धूप में नीचे कोसी की सड़क पर आने के लिए कौन छः किलोमीटर चले, मैंने पहाड़ी ढलान से जंगल के रास्ते उतरना शुरू किया। शायद नहीं करना चाहिए था ! काफ़ी ढलान थी, कंटीली झाड़ियाँ भी, और दूर दूर तक कोई नहीं। दो बार पाँव फिसला - एक बार पहली पहाड़ी पर, दूसरी बार दूसरी पहाड़ी पर। दाए पाँव की नस खिंच गई पर किसी तरह लंगड़ाकर तीस मिनट की मशक्क़त के बाद, दो पहाड़ियों का 'ट्रेक' कर मैं मुख्य सड़क पर था। थोड़ी दूर चलकर रानीखेत जाती एक बस मिली और तब जाकर जान में जान आई। 

कल यहाँ से वापसी है  ... 

Wednesday 12 April 2023

Ranikhet Diaries, Day 05

Reminiscences from my diary

April 10, 2023
Monday 0900 PM
Tara, Kalika, Ranikhet

"मछलियाँ दीवारें नहीं तोड़तीं, घर छोड़ देती हैं ... "

बाबुषा, सुनो! तुम्हें यहाँ आना चाहिए - कुमाऊँ - और कुछ वक़्त रहना चाहिए ! नर्मदा किनारे लिखीं तुम्हारी 'बावन चिट्ठियाँ' पूरी नहीं पड़तीं मेरे लिए, बीच प्यास छोड़ जाती हैं !

तृष्णाएँ ! मृगतृष्णाएँ !

दो मंदिर  ... नितांत उलटी दिशाएँ  ... घने सुनसान जंगल  ... चिलचिलाती धूप  ... चिलचिलाती ही हवा  ... सुन्न स्मृतियाँ  ... पाँव पाँव मैं  ... सिर्फ़ मैं !

रानीखेत में होते हुए भी अभी तक मुख्य रानीखेत नहीं देखा था। लेकिन जब देखा तो लगा, अरे! यहाँ तो मैं आ चुका हूँ। 'द फोल्डेड अर्थ' रानीखेत की ही तो दुनिया है। उछल पड़ा जब पॉल साब ने फ़ोन पर बताया कि अनुराधा रॉय रानीखेत ही रहती हैं। 

कल ही सोच लिया था कि रानीखेत का बाज़ार देखते हुए झूला देवी मंदिर और फिर वहां से हैड़ाखान बाबा मंदिर जाऊंगा, और वह भी पाँव पाँव ! पहाड़ों में आपकी सूझ-बूझ पर चीड़ और देवदार छाये रहते हैं ! समय और दूरी के आयाम रजाई ताने सोते रहते हैं !

कैंटोनमेंट इलाके को और फिर एक लम्बे जंगल को पार कर - लगभग पाँच किलोमीटर - लम्बे-छोटे डग भरता पहुँच ही गया हज़ारों घंटियों वाले झूला देवी मंदिर ! न जाने कितने लोगों से रास्ता पूछा होगा मैंने!  फ़ोन में सिग्नल ही नहीं आते यहाँ, और घड़ी-दो-घड़ी आएँ भी तो गूगल मैप ठीक से नहीं चलता। ऐसे में एक 'डाइरेक्शनली चैलेंज्ड' व्यक्ति के लिए बियाबान में एक प्राचीन मंदिर खोजना बहुत हिम्मत का काम है  ... बहुत!

झूला देवी मंदिर में लिखा था कि अगरबत्ती न जलाएँ, कि अगरबती में बाँस होता है, कि बाँस के जलने का अर्थ वंश का जलना है ! मुझे याद आये अतुल भैया - उन्होंने भी कभी बहुत समय पहले ऐसा ही कुछ कहा था ! कितने तरह के मिथक, कितनी तरह की प्रथाएँ !

यहाँ से निकलकर सोचा कि अब बहुत हुआ, कोई सवारी ली जाए! हाय! पहले मेरे नखरे थे! अब सवारी के! दूर दूर तक कोई सवारी नहीं ! हैड़ाखान बाबा ने सोचा होगा कि उनके पास भी मैं पैदल ही आऊँ !

झूला देवी से रानी झील की ओर एक 'ट्रेल' जाता है ! वापसी में वही पकड़ा ! 
सुन्दर ! बेहद सुन्दर! 
खतरनाक! बेहद खतरनाक! 
जब-तब हज़ारों पेड़ों की खरबों पत्तियाँ यूँ सरसराहट करतीं कि पूरा जंगल गूँज उठता। मेरी बौराहट के कई साथी!

एक बार फिर रानीखेत से होता हुआ चल पड़ा हैड़ाखान की ओर। लगभग साढ़े तीन बज गए थे। मेरा ख़्याल था कि किसी सूफ़ी संत की समाधि होगी पर हैड़ाखान बाबा को शिव का अवतार मानते हैं यहाँ। मंदिर में शांत ठन्डे फ़र्श पर कुछ देर बैठकर ध्यान लगाया। फिर काफी देर नीचे पसरी वादी देखता रहा। बहुत ही मनोरम जगह पर स्थित है यह मन्दिर। रानीखेत के लगभग सभी 'क्लस्टर्स' साफ़ नज़र आते हैं। यहाँ तक पहुँचने का रास्ता भी बहुत-बहुत सुन्दर है। उफ़्फ़ ! वैसे क्या-क्या बहुत सुन्दर नहीं है यहाँ? सब कुछ ही तो!

वापसी में दया बरसी। एक साहब ने कुछ दूर तक लिफ्ट दी। फिर तीसरी बार रानीखेत का बाज़ार पार किया और कालिका को जाती एक जीप से लिफ्ट ली। 

कुमाऊँ आता रहा हूँ पर आज जितना पैदल पहले कभी नहीं चला था  ... मसूरी में ऋषि भैया ने भी इतना नहीं चलाया था। वैसे जब तक आप किसी शहर, कसबे, गाँव की गलियां पैदल नहीं नापते, तब तक वहाँ की हवा आपसे ख़फ़ा रहती है, वहां का पानी आपको नहीं सुहाता, वहां की मिट्टी आपको नहीं छूती ! एक कमी-सी बनी रहती है। इसलिए चलना ज़रूरी होता है कभी। कभी यूँ ही चलते-चलते घर भी मिल जाते हैं  ... पर  ... 

"मछलियाँ दीवारें नहीं तोड़तीं, घर छोड़ देती हैं ... "

Sunday 9 April 2023

Ranikhet Diaries - Day 04

Reminiscences from my diary
April 09, 2023
Sunday 2030 IST
Tara, Kalika, Ranikhet

हिमालय की धूप मेरे शरीर का ताप है! 

सुबह साढ़े आठ बजे सौ किलोमीटर दूर बाघेश्वर के लिए निकला। काफी देर तक गाड़ी की खिड़की से बायाँ हाथ बाहर निकाल धूप के कणों को नाखूनों के पोरवों में, पोरवों से हथेली की रेखाओं में, वहाँ से धमनियों के जाल में, और जाल से सीधा दिल में सहेजता रहा! हवा में हमेशा की तरह चीड़ के घुंघरुओं की खनक थी! सफ़र लम्बा रहा पर नींद मेरे झोले में मज़े से सोती रही बिना मुझे परेशान किए! बाघनाथ के दर्शनों के बाद कुछ देर गोमती किनारे बैठना अच्छा रहा। यहाँ जलेबी काफी  मिलती हैं। 

एक साया है! हर सफ़र में साथ-साथ रहता है! यहाँ भी रहा! वापसी में बैजनाथ के बेतहाशा तपते पत्थरों पर पाँव रखा तो छाँव की खड़ाऊँ बन गया, फिर नंदी के कान में फुसफुसाई गई मन्नत और थोड़ी ही देर बाद खुद बैजनाथ के चारों ओर पसरा दस शताब्दियों का मौन! गर्भगृह में शिवलिंग के पास माँ पार्वती की एक विशाल मूर्ती है -  काले पत्थर से काटकर बनाई गई! मन करता है उनकी इस जटिल अप्रतिम मूरत को निर्निमेष निहारते रहो  ... निहारते ही रहो ! कहते हैं कि यहीं गोमती और सरयू के संगम पर शिव-पार्वती का विवाह हुआ था और वे यहीं रुके थे! न जाने कितनी कहानियाँ - किंवदंतियाँ उजास पाती हैं यहाँ !

साथ-साथ रहता है मगर साथ नहीं रहता  ... बैजनाथ से कौसानी के दौरान सोचता रहा कि काश  .. काश दाएँ - बाएँ चलती कुमाऊँ की कोई दुर्गम पगडण्डी उधार मिल जाए और मुझे सात आसमानों के पार ले जाए! मैं भी तो अक्स के रक़्स का लुत्फ़ उठाऊँ!

गरुड़ पार करते हुए एक लाउडस्पीकर से भेंट हो गई जो कह रहा था - आपके अपने 'शहर' गरुड़ में पहली बार 'अल्ट्रासाउंड' की सुविधा  ...!

कंप्यूटर चाहे कितने भी नीले और हरे के 'शेड्स' बना ले, उतने कभी नहीं बना पायेगा जितने मैंने कौसानी के आसमान में और खेतों में देखे! नीचे हरा, ऊपर नीला और क्षितिज पर फैली पूरी की पूरी 'कलर पैलेट'!

एक-दो गानों को छोड़कर कोई भी गाना पसंदीदा नहीं था पर रंजीत जी गाड़ी चलाये जा रहे थे और हर गाना गुनगुनाये जा रहे थे! हालाँकि रवि होता तो उसको भी ये सारे गाने ज़रूर पसंद आते  ... 


Saturday 8 April 2023

Ranikhet Diaries, Day 03
\
Reminiscences from my diary
Apr 08, 2023
Saturday 1015 pm
Tara, Kalika, Ranikhet

एक तरफ़ चीड़ और देवदार के ऊँचे-ऊँचे पेड़ और उनके नीचे जमे पत्थरों और चट्टानों के हर कोने से निकले अनगिनत तरह के जंगली फूल  .. दूसरी ओर हिमालय की वादियों की लहरें, और उनके पीछे सफ़ेद बर्फ़ से ढका, सूरज की ऊष्मा से सजा विशाल त्रिशूल! और बीच में?

बीच में संकरी सड़क पर अपनी धुन में डगमग-डगमग ढग भरता मैं ! :)

चार किलोमीटर अल्मोड़ा के रास्ते पर चलता रहा.. घाटी से अभिभूत होकर कभी भी कहीं भी रुककर एकटक देखता रहा  .. देखते-देखते फिर चलता रहा ! अल्पाइन कैफ़े से कुछ दूर पहले मैं नीची - सी एक छत पर उतरा और पाँव लटकाकर गहरे से हलके होती पहाड़ों की लड़ियों को देखता रहा  ...  ज़रूर ऐसी ही किसी जगह पर अनुराधा ने अपनी हैदराबादी माया को गड़ा होगा  .. शायद यहीं कहीं अपनी सिल्वर छड़ी से खेलते नब्भे बरस के दीवान साब दिख जायेंगे  ... शायद यहीं कहीं से कृष्णकली की खिलखिलाहट सुनाई देगी  ... शायद! वहाँ बैठा मैं याद करता रहा बारह बरस पहले ब्लैक्सबर्ग में बितायी शामें जब यूनिवर्सिटी से लौटकर मैं चुपचाप एक निर्जन सी जगह पर घास पर बैठ पांव लटका दूर 'मोव' रंग के पहाड़ों को देखता रहता  ... देखता ही रहता जब तक  पीछे से 'शानो' की पुकार न आ जाती ! 

उमंग से दो किताबें खरीदी, दो मफलर भी और एक कीवी जैम! लगभग एक घंटा वहां बिताकर वापस फिर अपनी लाठी से खेलता हुआ धीरे-धीरे पग भरता, बिना बंदरों से डरे लौट आया तारा! 

पूरी वापसी  यही सोचता रहा कि त्रिशूल, उस ओर दिखते पहाड़, और इस ओर के घने पेड़ ज़रूर एक ही रुबाई के टुकड़े हैं, जो बस एक एक दूसरे को तकते-तकते नज़्म-नज़्म हो रहे हैं ! इन नज़्मों को पिरोती हवा चिट्ठी पहुंचाने वाला कबूतर है !

सुकून की कोई और परिभाषा कोई गड़कर तो दिखाए !!


Friday 7 April 2023

Ranikhet Diaries - Day 02

Reminiscences from my diary

April 07, 2023
Friday, 0700 pm
Tara, Kalika, Ranikhet

चीड़ के पेड़ कितने सुन्दर होते हैं। 

तरह-तरह से सुन्दर  ... तरह-तरह से हरे!

ऐसा नहीं है कि पहले कभी नहीं देखा या कभी पढ़ा नहीं इनके बारे में। यूँ भी यदि आप निर्मल के दीवाने हों तो कहीं न कहीं चीड़ से अच्छी जान पहचान हो ही जाती है। पर आज से पहले इतनी तसल्ली से चीड़ों को मैंने नहीं देखा था। पहाड़ों के संकरे रास्तों पर ट्रैफिक जाम लगने का कुछ तो फायदा हुआ। :)

कल का दिन काफी हद तक सफर में बीता। दिल्ली से हल्द्वानी की ट्रेन भले ही काफ़ी रुक-रूककर चली पर झुंझुलाहट नहीं हुई। अब चाहे इसे रानीखेत जाने का, हिमालय से फिर मिलने का रोमांच कहूँ या चाहे तो दिल्ली की भीड़ से, उमस से दूर होने की तसल्ली ! रात के लगभग आठ बजे थे जब गाड़ी मुरादाबाद स्टेशन  छोड़ रही थी। अँधेरे में जल-बुझ करती रंगीन रोशनियाँ देखते-देखते नज़र ऊपर आसमान पर पड़ी तो बस वहीं अटक गयी थी  ... कितनी ही देर तक!

चैत की पूनम का चाँद!

कितना वृत्त! कितना सफ़ेद!

चलती ट्रेन की खुली खिड़की से आती ठंडी हवा की सिरहन को समेटता मैं टकटकी लगाए साथ चलते चाँद को अपनी आँख के पानी में सहेजता रहा ! सुनो गुलज़ार! चाँद पर तुम्हारा ही कॉपीराइट नहीं है ! न मान पाओ तो 'अपने' चाँद से उसका पता माँग लेना ! :)

कल चाँदनी, आज चीड़! कोई चाहकर भी कैसे न याद करे निर्मल को, निर्मल की 'चीड़ों पर चाँदनी' को! निर्मल के साथ आज हालाँकि कुछ बातें अनुराधा की भी कौंधती रहीं कि रानीखेत-अल्मोड़ा के पहाड़ों को देखते हुए ऐसा लगता है जैसे ये वादियाँ धरती की लहरें हों जो कभी किसी काल में उठीं और बस उठीं ही रह गयीं ! इन्हीं लहरों को कल रात के चाँद की बगल में बिठाते-बिठाते कब ढाई घंटे से पाँच घंटों में बदला हल्द्वानी - रानीखेत का सफ़र इत्मीनान से बीत गया, ख़ास पता नहीं चला। 

तारा एक बहुत खूबसूरत कॉटेज है ! बहुत ज़्यादा खूबसूरत ! पॉल कपल ने बहुत शालीनता से इसको बनाया - संजोया है। सत्तर वर्ष के कल्याण पॉल और अनीता पॉल से बात करना अपने आप में सुकून है ! यह बात अलग है कि मिसेस पॉल की चाय मेरे मन को ज़रा भी तरावट नहीं दे पाई ! कल ये लोग अचानक से किसी काम से दिल्ली जा रहे हैं। इनसे दोबारा मिलना नहीं होगा ! क्योंकि तारा में ठहरने का एक कारण पॉल्स के साथ रहना भी था, इनका जाना निराशाजनक है !

ख़ैर  ... 

एकांत की नियति से कोई तारा भला क्यों उलझे  ... 


Friday 17 March 2023

Your nails, ten!

Reminiscences from my diary
March 17, 2023
Friday 2245 hrs
Murugeshpalya, Bangalore


एक नाख़ून
गौरैया का उजड़ा - उखड़ा नीड़ 
एक नाख़ून 
गंगा की चुप - चुप बंजर पीड़ 
एक नाख़ून 
ऊबड़ - खाबड़ कैलाश 
एक नाख़ून 
कुछ - कुछ फूल पलाश 
एक नाख़ून 
चाँदनी नहाये चीड़ों का सिल्हूट 
एक नाख़ून 
अंग्रेज़ी मेम का चमकीला सूट - बूट 
एक नाख़ून 
अपनी ही उँगली का सिल्वर छल्ला 
एक नाख़ून 
शम्स - ए - तबरेज़ी झल्ला 
एक नाख़ून 
कोन्या की गलियों की भटकन 

आख़िरी नाख़ून 
साँस - साँस साँस - साँस अटकन 


Sunday 5 March 2023


The Moon & You Rantings

Reminiscences from my diary

March 05, 2023
Sunday 1130 pm
Murugeshpalya, Bangalore


तुम -
चाँद को देखते हो 
चाँद -
मुझे देखता है 

मैं -
तुम्हें -
क्यों नहीं देख पाता ?


***


रास्ते भर 
बारीक लकीर चाँद की
मुझे 
एकटक तकती रही 

सुनो -
तुम चाँद तो नहीं !
तुम चाँद क्यों नहीं ?


***


तुमने 
दिन का -
चाँद 
देखा है कभी?

कभी - कभी रात का -
चाँद
कम खूबसूरत होता है !


***


सुनो, तुम-
मुट्ठी क्यों नहीं 
खोल देते ?

मेरे आसमान का चाँद 
तुम्हारी रात की -
बेतरतीबी में 
उलझा पड़ा है !


***


मेरी ओक में 
चाँद उड़ेलकर 
तुम 
बहुत दूर निकल गए 

मैं 
उस चाँद का 
ग्रहण हूँ !


***



Thursday 2 February 2023

Ocean's black and the fireflies

Reminiscences from my diary

Feb 02, 2023
Thursday, 2030
Varkala Cliff

साँझ की बाती बुझ चुकी थी
मैं
अपने साथ
अपने सामने पसरे समंदर का
अँधेरा
घूँट - घूँट पी रहा था

पहरों को बीतना था ही
वे बीत रहे थे

आसमान का धुँधलका
पानी - पानी था
सलिल में
बादलों का ज्वार

और फिर
अचानक से
बिल्कुल अचानक से
न जाने किस लोक
किस दिशा से

जुगनुओं की बारात आ धमकी


उधर क्षितिज जगमगाया
इधर मैं फ़फ़ककर रो पड़ा