Saturday 31 January 2015


Waters of the Sukhna, Reminiscences - 4


Reminiscences from my diary
Jan 7, 2011, 11:30 p.m.
A 118, Thapar, Patiala

जब दस साल पहले ,
सुखना ताल -
निर्जन - सा -
नैसर्गिक - सा हुआ करता था  …
जब उस उन्मुक्त सलिल , और -
खुले आसमान के बीच -
ठंडी हवा बौरा जाया करती थी  …
तब उस सुन्दर शाम में -
ठिठुरती सर्दी में -
सीढ़ियों के पास-
उस बौराई पवन से -
आलिंगन की चाह में -
खुला मन और खुली बाहें -
एक कल्पना संजो रही थी !
तभी -
वापसी की पुकार आई -
मैं तो लौट आया , पर -
आधी अधूरी -सी -
गीली - सी -
बौराई - सी -
वह कल्पना वहीँ रह गयी !
बुनना चाहता हूँ , उसी कल्पना को -
और , संजो कर रखना चाहता हूँ उसे -
सदा -सदा के लिए !





Monday 26 January 2015

Friends on the terrace, Reminiscences - 3



Reminiscences from my diary
Jan 6, 2011
8 PM
A 118, Thapar, Patiala


सर्दी की गुनगुनाती शाम में -
छत पर -
जियोग्राफी में -
सवाना पढ़ते पढ़ते -
जब शॉल में लिपटी नज़र -
अनायास ही पड़ गयी थी -
सामने की अटारी  पर चढ़ी -
उस लड़की पर -
आठ नौ साल की थी शायद -
जो कितनी मासूमियत से -
अपने पड़ोसी हमउम्र दोस्त से -
बतिया  रही थी  …


और  … उधर ,
उधर  -
शाम की बढ़ती सर्दी से ठिठुरता सूरज -
भागा जा रहा था -
किसी रजाई की खोज में -
अपना रक्त फैलाता हुआ !
मेरी एक नज़र वहाँ ठहर गयी थी -
उस जोड़े पर -
उस बचपन पर -
उस अटारी पर  … !
शायद  आज भी -
मुझे इंतज़ार रहता है -
उस नज़र का !
वो नज़र , वो शाम -
- फिर से पाना चाहता हूँ ! 

Sunday 25 January 2015


                A moment with the half moon, Reminiscences - 2


Reminiscences from my diary
Sept 22, 2011
3 A.M.
GFC, IISc, Bangalore


दिसंबर की वह सर्द रात  …
जिसे मनाली की बयार -
- और भी सर्द बना रही थी -
होटल की तीसरी मंज़िल के ऊपर ,
वह छत -
नीचे, बौद्ध चैत्य -
सामने कहीं से आती कुत्तों की सर्द आवाज़  … !
अनायास ही शरीर में ,
और-
मन में भी -
एक कम्पन सी होने लगी थी !
सामने बर्फ से ढके पहाड़ -
कुछ आधे चाँद की पूरी ज्योत्सना में -
नहा चुके थे -
और कुछ -
नहाने की तैयारी कर रहे थे , शायद !
पीछे भाई खड़ा था -
मुझे देख रहा था , या -
पहाड़ों को , पता नहीं !
आँखें निर्निमेष दूर उन शिखरों  पर टिकी थीं -
क्या ढूंढ रहीं थीं , पता नहीं !
और तन , तन तो अभी भी मन के साथ -
कांप रहा था !
वह कम्पन,
वह आधा चाँद ,
फिर से चाहता हूँ -
- जो पहाड़ों से घिरी -
उस छोटी सी छत पर -
कहीं छूट  गए हैं !

Monday 19 January 2015

              'The' moment, Reminiscences - 1


Reminiscences from my diary
Sept 27, 2011 Tuesday
10:00 P.M.
Library, IISc, Bangalore


रात करीब ढाई बजे -
जब सलिल सो गया था -
जब आस पास की बत्तियाँ भी बुझती जा रहीं थीं -
जब मन में एक अजीब - सी सिरहन -
एक अलग - सी अनुभूति हो रही थी -
कुछ डर , कुछ हर्ष , कुछ आश्चर्य -
गोद में वह छोटा - सा तकिया -
और उस नीले कम्बल में खुद को लपेटकर -
कानों में 'इयर-फ़ोन्स' , जिनसे -
कोई ' वेस्टर्न इंस्ट्रुमेंटल ' मिश्री - सी घोल रहा था -
नीचे एकटक देखता रहा -
देखता रहा -
दिल्ली की उन रोशनियों को -
जो धीरे - धीरे बिन्दुओं में परिणत होतीं जा रहीं थीं -
आज दिल्ली बहुत सुन्दर दिख रही थी -
पहली बार  …
और,
पहली बार  …
मैं भी जा रहा था -
सात समुन्दर पार -
'उस पहली बार ' के उन पहले पलों को -
फिर से महसूस करना चाहता हूँ -
जीना चाहता हूँ -
उठाना चाहता हूँ  सलिल को -
दिखाना चाहता हूँ उसको छोटी - सी दिल्ली -
और,
रखना चाहता हूँ गोद में -
फिर से,
उस पहली उड़ान के पहले तकिये को  .... !