Wednesday 26 September 2012

  Mist...Fog....Enigma....!!

 

REMINISCENCES FROM MY DIARY....

October 17, 2010 

9 P.M., A 118, Thapar, Patiala              


(Its Dussehra today. I, Gaurav babu, Geeta, Khushboo, Alisha, Manasvi and astonishingly Sharan went on a small evening temple trip and captured some of the wonderful moments for the lifetime...)

 

समझ नहीं पा रहा हूँ ,
क्यों आज ,
चारु चन्द्र की दूधिया चांदनी 
मटमैली - सी लग रही है ...!
आज शायद बिन मौसम की धुंध चारों ओर -
- पसरी पड़ी है ....

क्या वहाँ दूर ...
दूर , ' मामा ' के आगे,
किसी काले मेघ का पहरा है ?
या फिर ,
आज शायद ,
निशा की कालिमा जीत गयी ...
.... और, हार गयीं वे उज्ज्वल रश्मियाँ !
या फिर ,
शायद मैं ही ...
...मेरी आँखें ही धुंधली - सी पड़  गयी हैं ...
क्योंकि, 
आज शायद बिन मौसम की धुंध चारों ओर -
- पसरी पड़ी है ....

हाँ ! धुंध , कुछ मटमैली - सी ...

याद आ गया अनायास ही ,
घर के बाहर ,
चबूतरे पर बैठी ,
उस  बूढ़ी पापड़ वाली का-
- फटा मटमैला आँचल ।
और,
मटमैली ओढ़नी उस नन्ही बच्ची की ,
जो मिली थी एक सफ़र में ....
हमसफ़र - सी बनी ।

सोच ही रहा था ...
कि साथ ही दस्तक दे गया ,
एक धुंधला  चेहरा ,
चेहरा उस अजनबी - से दोस्त  का ,
जो कभी अपना - सा बना गया था ,
एक पराये मुल्क में ....!

और फिर ...
पीछे - पीछे आ गयी ...
एक और परछाई ,
श्याम -  श्वेत - सी ...
श्याम ज़्यादा ,  श्वेत कम ...
परछाई उस बूढ़े की ,
जो शैशव से मेरा मित्र था,
मेरा सर्वस्व ...!

और फिर ...
कुछ ही पलों में ,
न जाने कहाँ से ,
आँखों के आगे छा गया ,
संगम की गंगा का धुंधला पानी ,
और,
पानी में तैरती एक धुंधली - सी नाव ।
न जाने कब वह नाव ले गयी मुझे ,
उसी पसरी धुंध में खोये देवदार के जंगलों में ,
जहाँ दिखाई तो दे रहा था ,
पर फिर से ,
धुंधला धुंधला - सा ...!
धुंधले - से पत्ते ...
धुंधले - से जुगनू ...
और,
धुंधली - सी उनकी जगमगाहट ....!

न,
कुछ तो है ...
कुछ तो ज़रूर ...
शायद,
मानस पटल किसी की दस्तक की 
राह देख रहा है ...
या फिर,
मन यूँ ही ,
किंकर्तव्यव विमूढ़ - सा,
अन्यमनस्क - सा होकर ,
खोना चाहता है ,
किसी ऐसे ही धुंधलके में ....

और,
शायद इसीलिए 
लग रही है आज,
शुभ्र चन्द्रिका भी ,
मटमैली - सी ...
क्योंकि, 
आज शायद बिन मौसम की धुंध चारों ओर -
- पसरी पड़ी है ....!!



1 comment:

  1. Shanu, you have captured the golden moments so graphically... I remember our trip to gurudwara sahib and floating restaurant....

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