Friday 15 January 2016

Baba ... 

Reminiscences from my diary
Nov 26, 2006
12:30 AM
Saharanpur

शाम में टहलते हुए बरबस ही नज़र पड़ गयी एक मोटी उँगली थामे उस नन्हे हाथ पर  ... ज़रूर पार्थ के दादाजी हैं ! और फिर समय की सबसे छोटी इकाई जितना ही समय लगा मेरे बाबा को मुझ तक पहुँचने के लिए ! देखा तो मेरे बाबा भी मेरे साथ चल रहे थे !

सच, जीवन के वे पंद्रह बरस और  इन बरसों का हर लम्हा स्मृतियों की एक सुदीर्घ श्रृंखला बना गया जो मुझे अपने कल से और उस कल में जीते बाबा से हमेशा ही जोड़े रखता है ! यूँ तो बाबा के हर रूप पर , उनकी हर याद पर , स्मृतियों की इस श्रृंखला की हर कड़ी पर मन भाव - विह्वल हो उठता है , पर एक रूप ख़ास तौर पर ऐसा है , जिस पर मन बलिहारी हो हो जाता था  - तब भी , और आज सोचता हूँ, तो आज भी !

सावन की फुहारों में , मदमस्त बयार के साथ में , जब तहमद और अपने पसंदीदा कागज़ी रंग के कुर्ते में, हाथ में छतरी लिए वह बाहर से पान चबाते हुए आते थे , और 'बाबा' पुकारने पर 'बेटा जी' कहकर गले लगा लेते थे , तो ऐसा लगता था कि जीवन का चरम सुख मिल गया हो ! बाहों का वह घेरा आज तक अपना सामिप्य प्रदान करता है मुझे ! बाबा की यह छवि मन को अनायास ही आह्लादित कर देती है और ऐसा प्रतीत होता है मानो समय ठहर गया हो और ले गया हो मुझे सावन की उन्ही फुहारों में , उसी मदमस्त बयार के बीच , उन्ही बाहुपाश में , और गूंजने लगता है एक स्वर  .... 'बेटा जी' ... !

रौबीला व्यक्तित्व , कोमलता और कठोरता का अद्भुत समन्वय , दुनियादारी की उत्तम तहज़ीब , औरों की सहायता , और अपने पोता - पोती से सबसे अधिक लगाव  - ऐसे थे मेरे बाबा ! यूँ तो ताऊजी के दोनों बेटे हमसे बड़े थे , पर बाबा ने कभी देहरादून जाकर उनके पास रहने के लिए  नहीं कहा। बाबा के लिए तो बस उनके ये पोता - पोती ही सब कुछ थे। कैसे भुला दूँ गोधूलि के वे कालांश जब तैयार होकर वे हम दोनों को अपने साथ घुमाने ले जाते थे - रानी बाज़ार के पातालेश्वर मंदिर में 'भगवान जी' को फूल चढ़ाना , फिर मंदिर के बाहर वाली दुकान पर 'गोली वाला लिम्का' पीना , लौटते हुए 'टॉफियां ' और 'इमली के गोले' खरीदना , 'पतली गली ' वाले रास्ते से लौटना , लौटते हुए 'गफ्फार पानवाले ' से मिलना  ... न, क्यों भूलूँ इन सब को मैं !

भुलाये नहीं भूलता उनका वह हृदयग्राही रूप जब सूट-बूट पहने ,  करीने से टोपी मफलर लगाये वह चौक में जाने के लिए तैयार होते थे और छोटी - सी आयु के यह कहने पर कि - बाबा, काला टीका लगा लो , कहीं आपको नज़र न लग जाये - वह आयु को गले से लगा लेते थे और निहाल हो जाते थे - इतने 'हैंडसम ' थे मेरे बाबा !

रोज़ देर शाम को जब मैं 'इन्सुलिन' लेकर चौक में जाता था, बाबा अपने 'बेस्ट फ्रेंड' इंजीनियर अंकल के  गप्पे मारते मिलते थे।  'जैन साब ' ... हमारे अंकल 'जैन साब' की दुकान और उस दुकान का चबूतरा रोज़ शाम उनकी महफ़िल जमने का अड्डा होते थे।  कितनी सुन्दर थीं वे शामें , वे हंसी - ठहाके , वे बातें ! लौटते हुए बाबा हमेशा मेरे दाईं तरफ चलते थे और अपना बायां हाथ मेरे कंधे पर रखकर ढेर सारी बातें करते थे , 'मुझे कोका-कोला' और खुद 'फैंटा' पीते थे।  आज तक मुझे अपने बाएं कंधे पर उनका स्पर्श अनुभव होता है और जानता हूँ, हमेशा होता रहेगा !

कितने 'एक्टिव' थे मेरे बाबा !   जो भी काम करना है, वह करते थे - परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों ! कोई आलस्य नहीं, कोई निराशा नहीं , समय अनुकूल हो या प्रतिकूल - अपनी अंतश्चेतना को हमेशा तंदरुस्त रखते थे।  सुबह उठकर दूध लेने जाते थे - गर्मी हो या सर्दी , मौसम ख़राब हो या तबियत - उनकी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आता था।  अपना काम  गुनगुनाते रहते थे।  सवेरा होने पर मुझे उठाने का काम उन्ही का था।  मंदिर से लौटने के बाद नाश्ता करते और साइकिल पर बाज़ार की तरफ निकल जाते थे।  लौटने पर गली के बाहर से ही मुझे चार बार पुकारते थे - "शानू बाबू ,  शानू जी  .... शानू जी , शानू बाबू " - दुनिया के सभी मिष्ठानों में इतनी मिठास नहीं होगी जितनी मीठी उनकी आवाज़ होती थी।  उनके होने का यह एहसास अप्रतिम थे - तरसते हैं ये कान उसी गूँज, उसी आवाज़ के लिए।

कभी कुछ, कभी कुछ - रोज़ हम बच्चों के लिए कुछ - न - कुछ लाते थे।  मंगलवार के दिन 'मंगल बाज़ार' से मेरे लिए ढेरों ढेर नंदन, चम्पक, चन्दामामा , सुमन - सौरभ आदि किताबें लाते थे।  वही तो थे  जिनसे मैंने कहानियों के किरदारों से बातें करना सीखा ! रोज़, दिन में बाज़ार से आने के बाद , तहमद बदलकर , बड़ी कुर्सी पर बैठकर , चश्मा लगाकर, खीरा खाते हुए अखबार पढ़ते थे - एक  और छवि जो रूह तक घुली हुयी है। जहाँ दो बजे , वह टी.वी.  देखते हुए हमारे स्कूल से आने का इंतज़ार करते रहते थे और जब तक हम दोनों स्कूल से नहीं आते थे, खाना नहीं खाते थे।  हम दोनों से सलाद की थाली वह स्वयं लगाते थे।  आयु से लड़ाई होने पर हमेशा उसी का पक्ष लेते थे और कहते - कोई बात नहीं, छोटी बहन है। दिवाली हो या फिर नव वर्ष का आगमन, हमेशा हम दोनों को अपने साथ ले जाते थे और ' टीचर्स' के लिए 'ग्रीटिंग कार्ड्स' दिलवाते थे। शायद इसी लिए आज भी 'ग्रीटिंग कार्ड्स' बहुत पसंद हैं मुझे !

बीमार होने पर हमारा पूरा ख्याल रखना , कभी कहीं जाने पर हमारे लौटने की राह देखना , हमारे बिना मन न लगना , रोज़ रात में टी.वी. पर होने वाली नोक-झोंक , गर्मियों में  बड़े कमरे में कूलर के सामने सोना , सर्दियों में छत  पर बैठकर नाश्ता करना , दाढ़ी बनाना , रात में बिजली न होने पर लालटेन की रोशनी में एक साथ खाना खाना - सच असंख्य पल हैं, असंख्य स्मृतियाँ ! क्या -क्या और कैसे एक - एक को पन्नों पर उकेर दूँ!

 सर्दियों में  रजाई में बैठकर मूंगफली कहते थे और हम दोनों को छील - छील कर खिलाते रहते थे और कहानियां सुनाते रहते थे।  आज भी सर्दी की वह एक शाम पाने के लिए सब कुछ अर्पण कर सकता हूँ। उन्होंने कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि पापा हमारे साथ  वक़्त बिताते हैं और पढ़ाई के अतिरिक्त कोई और बात नहीं करते थे।  वास्तव में अपने शैशव पर नज़र डालूं तो बस बाबा ही नज़र आते हैं।  

लिखते - लिखते एक और शाम दस्तक दे गयी है - जब मुझे स्कूल के जूते और घड़ी दिलवाने 'नया बाज़ार' ले गए थे - पांच सौ अस्सी रुपए के बाटा के जूते - आज भी मैंने अपने पास रखे हुए हैं।  कितना डांटा था पापा ने मुझे इतने महंगे जूते खरीदने के लिए , पर हमेशा की तरह बाबा ने सब सम्भाल लिया था।  

जब भी हम 'गुगाल' के मेले गए , उन्ही के साथ।  हर साल वह ही मेला घुमाते, झूले झुलाते ,  'ऑरेंज - बार' खिलाते , 'सर्कस' दिखाते - स्वर्णिम समय था वह, जब उनका प्रत्यक्ष सानिध्य मिला था ! छोटी होली से पहले हमारे लिए गुब्बारे, रंग, पिचकारी लाते थे।  फाल्गुन का आरम्भ उनके माथे पर लाल टीका लगाकर मैं ही करता था और वह छत के कमरे के दरवाज़े खोलकर अखबार पढ़ते हुए होली की फ़िज़ाओं का आनंद लेते थे। धनतेरस के दिन बुरादा लाकर खुद रंगते थे , धूप में रंगों को सुखाते थे और फिर मेरे और आयु के आँगन में रंगोली बनाने पर झूम से जाते थे  ... 

दो बज गए हैं। सुबह जल्दी उठना है !  विराम देना होगा , वैसे भी ये पिटारा कभी खाली नहीं वाला! आज के मरुस्थल के लिए बाबा न सही, उनकी स्मृतियों का सलिल ही सही , तर जाता हूँ उनके ख्याल से ही !




2 comments:

  1. This one touched my heart.gugaal ke mele par tou aankhen bhar aayi.

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  2. This one touched my heart.gugaal ke mele par tou aankhen bhar aayi.

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