Tuesday 7 June 2022

Parizaad

Reminiscences from my diary

June 07, 2022
Tuesday 10:20 pm
Murugeshpalya, Bangalore


परीज़ाद! परीज़ाद! परीज़ाद!

कब से सोच रहा हूँ कि तुम्हारे लिए कुछ लिखूँ, कोशिश करूँ एक कविता की, या फिर ग़ज़ल, और कुछ नहीं तो, कमस-कम एक खत ही सही! पर तुम्हारी ख़ुमारी इस कदर सिर चढ़ी हुई है कि हर कोशिश बेज़ार, अधूरी लगती है!

खैर ... 

सबसे पहले तो तुम्हारा होने के लिए शुक्रिया, परीज़ाद!
फिर 
तुम्हारा तुम, सिर्फ़ तुम होने के लिए शुक्रिया!

जानता हूँ कि तुम अब भी नहीं मानोगे, पर तुम्हारा नाम वाकई में बेहद खूबसूरत है परीज़ाद! यूँ भी तुम्हारा नाम रखते हुए तुमने अपनी अम्मी की आँखें नहीं देखीं थीं, मैंने देखीं थीं! पानी और चमक से भरी! तुम्हारी अम्मी को शायद परियों के उस देश का पता मालूम था जहाँ से तुम उतरे हो! हाँ! तुम सच में ही किसी अनोखे देश से आए हो, परीज़ाद!

मेरे एक अज़ीज़ उस्ताद हैं विष्णु सर। वह काफ़ी समय से एक कविता जैसा कुछ बुन रहे हैं जिसका उन्वान है - अधेड़ उम्र के लड़के! वह कहते हैं कि इस नाम से उन्हें मेरी याद आती है, मैं कहता हूँ तुमसे ज़्यादा खूबसूरती और संज़ीदगी से कौन ही इसे इंतिख़ाब कर पायेगा! 

परीज़ाद, तुम्हें जानने के सिलसिलों में मुझे कई मर्तबा लगा है कि तुम्हारी रूह का कोई जुगनू ज़रूर किसी ज़माने कोन्या या इस्तांबुल की गलियों में भटका है। शफ़ाक़ की नज़र से जब मोहब्बत को समझने की कोशिश की थी, तब माना नहीं था कि रूमी या रूमी के शम्स के अलावा कोई कभी मुतलक़ सादगी और बेशर्त इश्क़ कर सकता है, या फिर अज़ीज़ और एला जैसे लोग किताबों के बाहर भी साँस ले सकते हैं। मुझे गलत साबित करने के लिए शुक्रिया, परीज़ाद। कुदरत का किया सही - सही किसने जाना ! क्या पता, तुम, मौलाना, शम्स,  एला, अज़ीज़ सब एक ही रूह हों !

फ़िक्र न करो, परीज़ाद ! मैं तुम्हें खुदा के तख़्त पर नहीं बिठा रहा ! मैं बस इतना कह रहा हूँ कि तुम होना अजूबे से कम नहीं।  हालाँकि मुझे वह वक़्त भी याद है जब तुम भी प्यार में, चंद लम्हात ही सही, पर ख़ुदग़र्ज़ बन बैठे थे और अपने रक़ीब को मारने पर आमादा हो गए थे ! मैं हैरान, परेशान यह सोचकर कि तुम भी ? तुम तो बिना शर्त, बिना जताये सुफ़ियाना इश्क़ वाले बशर थे ! मेरा दिल बेहद घबराया था और भरोसे का प्याला हाथ से छूट गया था लेकिन इसे तुम्हारे नाम का करिश्मा ही कहूँगा कि प्याला हाथ से छूटा ज़रूर, पर टूटा नहीं ! आखिर कमज़ोर लम्हे तो हर एक के हिस्से में कभी न कभी आते ही हैं - फिर चाहे मौलाना हों, एला हो, या हो तुम, परीज़ाद !

ख़ुसरो ने अपनी रुबाइयों में अधूरे इश्क़ की पीर का भी शुक्राना अदा करने को सबसे खूबसूरत जज़्बा कहा है।  तुम पहले इंसान हो जिसे मैंने यह अमल करते देखा है। पलक झपकते ही गहरी से गहरी चोट देने वाले की झोली में माफ़ी और शुक्राना देना कौन दुनिया से सीख कर आये, परीज़ाद? तुम्हारी एक - एक माफ़ी पर सौ - सौ बार बलिहारी हुआ मैं। और उन लोगों की फेहरिस्त जिन्हें तुमने माफ़ किया, सोचता हूँ कि क्या वे सब ताउम्र तुम्हारी या तुम्हारी माफ़ी की कद्र करेंगे? 

ख़ैर  ... क्या ही फ़र्क पड़ता है तुम्हें ! तुमने तो यूँ भी अपने अंदर हर आह, हर तड़प, हर उन्स को बहुत सलीके से दफ़न किया हुआ है! और शायद इसीलिए, तुम्हारा दिल ताज महल से कई गुना ज़्यादा सुन्दर कब्र है!

बेहद सुकून मिला है तुमसे मिलकर, परीज़ाद! बेहद सुकून! तुम्हें देखकर हिम्मत बँधी है, तुमसे सीखने की कोशिश की है कि कितनी सादगी से, शालीनता से प्रेम से उपजी पीड़ा को सिर - माथे रख जिया जाता है  ... कि कैसे उस कसक से फूल खिलाये जाते हैं  ... कि कैसे किसी भी डगर पर दोस्त बनाए जाते हैं  ... कि कैसे दिल पर पत्थर रख उन्हीं दोस्तों से फिर बिछड़ कर आगे बड़ा जाता है  ... कि कैसे उस बिछड़न को अपना हमसफ़र बनाया जाता है  ... कि कैसे दौलत को हाथ की धूल समझा जाता है  ... कि कैसे खुद को औरों के लिए न्योछावर किया जाता है  ... कि कैसे हर किसी से हँस बोलकर भी अपना एकांत सहेजा जाता है  ... कि कैसे और क्यों  सिर्फ़ अपने एकांत, अपनी इज़लात पर ही बार बार लौटा जाता है  ... कि कैसे खुद को हर्फ़ के हवाले किया जाता है  ... कि कैसे उन्हीं हर्फों से जीने के लिए साँस सींची जाती है  ... कि कैसे दुनिया और दुनियावालों की रुस्वाइयों से थककर कुदरत की ओर रुख किया जाता है ! 

अरे हाँ! कुदरत से याद आया - मैं तो बौरा ही गया यह देखकर कि आम ज़िन्दगी की मशक्क़तों और अपनों की मसरूफ़ियतों से थक - हार आखिरकार तुमने भी पहाड़ों को और पहाड़ों ने तुम्हें अपनाया, और वह भी शिद्दत से! तुम्हें एक राज़ की बात बताता हूँ - मैं भी उसी रास्ते पर हूँ ! और वक़्त का क्या पता, परीज़ाद ! काश कभी यूँ हो कि हिमालय या हिन्दुकुश के किसी बर्फ़ीले कोह की पगडण्डी पर टहलते - टहलते,  कायनात की बेतरतीबियों पर मुस्कुराते - मुस्कुराते, कोई कविता या गीत गुनगुनाते - गुनगुनाते तुमसे अचानक मुलाक़ात हो ही जाए!



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