Friday, 28 March 2025

Prayers, unfulfilled!

Reminiscences from my diary

March 28, 2025 
Friday 2215 IST
Murugeshpalya, Bangalore


कैसी होती होंगी
वे प्रार्थनाएँ 
जो कितनी ही मुद्दत 
और शिद्दत से की जाएँ 
पूरी ही नहीं होतीं ?

मैं अक्सर सोचा करता हूँ 

क्या होता होगा इनका ?
क्यों होता होगा ऐसा ?
कहाँ से आती होगी इतनी 
बदनसीबी 
और धीर ?

ईश्वर बधिर है क्या ?
या लापरवाह ?
या गलत ?
या सही इष्ट पर गलत पता ?

और शायद इसलिए 
सही पता ढूँढ़ते ढूँढ़ते 
राह ग़ुम जाती होंगी 
ऐसी प्रार्थनाएँ 

किसी घने जंगल में 
क्षितिज के आस पास 
या मरीचिका खोजते-खोजते कोई 

हो सकता है इतना थक जाती हों कि 
बिखर जाती हों टूटकर 
टुकड़ा-टुकड़ा 
तार-तार 
जैसे 

मिटटी की गागर गिरती है छन्न से 
जश्न से पहले गले का हार 
या कोई प्रेमी 

यह भी हो सकता है कि 
जल जाती हों ये प्रार्थनाएँ 
धुआँ-धुआँ 
जैसे जलाई जाती हैं 
अधलिखी कविताएँ और 
कभी न पढ़ी गयीं चिट्ठियाँ 

किसी उल्का से 
जुगनू से 
या अपनी ही आँच से 


ऐसी प्रार्थनाएँ 
साँस की आस लिए 
भटकती रहती हैं 
कल्पों कल्प 

गुरबानियों में 
किन्नरों के स्पर्श में 
या तथागत के ध्यान में 

यूँ भी तो हो सकता है कि 
ये प्रार्थनाएँ ही खोखली हों ?
सच्ची न हों ?
या फिर 
प्रार्थना प्रार्थना ही न हो
हों अनगढ़ आरज़ू 
और इसलिए ग़ुम हो जाती हों 
किसी ब्लैक होल में 

कितने ही विकल्प हैं 
कितनी 
ही
सम्भावनाएँ 

मैं प्रार्थना करता हूँ 

ऐसी सभी प्रार्थनाएँ 
जो पूरा होने की आस लिए 
ब्रह्माण्ड में भटक रही हैं 
किसी सुन्दर साँझ
सदा-सदा के लिए 
कैवल्य पा जाएँ !




Friday, 7 March 2025

I don't need to find you anymore!

Reminiscences from my diary

Mar 07, 2025
Friday 2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore


शुरू-शुरू में 
आलम ऐसा रहा कि 
मैं अपने आस-पास

हर भीड़
हर चेहरे में
हर सड़क, हर मोड़ 
तुम्हें तलाशता

ध्यान से
शिद्दत से 
बेतहाशा 

जानते हुए भी कि 
तुम नहीं यहाँ 
कि तुम कोसों दूर 
या कल्पों 

फिर भी 

किसी की नाक तुम्हारे जैसी 
किसी की हँसी 
किसी की गंध या 
कद-काठी, चाल 

पर 
कोई भी कभी भी 
पूरा का पूरा 
तुम-सा नज़र नहीं आया 

बुदबुदाता रहा मैं 
कई कई अफसून 
कि 

धुँआ उठे 
और तुम आ जाओ 
छन से
झट से 

लोग 
मुझे पागल समझते 
मैं भी 

खुद को समझता 
पागल, सनकी, 
अजीब 

तुम 
कभी नहीं मिले 
तुम 
कहीं नहीं मिले 

फिर एक दिन 

शायद कहीं कोई 
तारा टूटा
रोया चाँद या 
मुस्कुराया साईं 

और 
तुम्हें खोजने की
हद 
पार हो गयी 

उस दिन 

मैं 
बना 
तुम 

... 

अब मैं तुम हूँ 
कतरा - कतरा 
पूरा का पूरा 

और यह 
कितनी खूबसूरत बात है !