Friday, 7 March 2025

I don't need to find you anymore!

Reminiscences from my diary

Mar 07, 2025
Friday 2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore


शुरू-शुरू में 
आलम ऐसा रहा कि 
मैं अपने आस-पास

हर भीड़
हर चेहरे में
हर सड़क, हर मोड़ 
तुम्हें तलाशता

ध्यान से
शिद्दत से 
बेतहाशा 

जानते हुए भी कि 
तुम नहीं यहाँ 
कि तुम कोसों दूर 
या कल्पों 

फिर भी 

किसी की नाक तुम्हारे जैसी 
किसी की हँसी 
किसी की गंध या 
कद-काठी, चाल 

पर 
कोई भी कभी भी 
पूरा का पूरा 
तुम-सा नज़र नहीं आया 

बुदबुदाता रहा मैं 
कई कई अफसून 
कि 

धुँआ उठे 
और तुम आ जाओ 
छन से
झट से 

लोग 
मुझे पागल समझते 
मैं भी 

खुद को समझता 
पागल, सनकी, 
अजीब 

तुम 
कभी नहीं मिले 
तुम 
कहीं नहीं मिले 

फिर एक दिन 

शायद कहीं कोई 
तारा टूटा
रोया चाँद या 
मुस्कुराया साईं 

और 
तुम्हें खोजने की
हद 
पार हो गयी 

उस दिन 

मैं 
बना 
तुम 

... 

अब मैं तुम हूँ 
कतरा - कतरा 
पूरा का पूरा 

और यह 
कितनी खूबसूरत बात है !

 


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