Friday, 19 September 2025

Our sacred game

Reminiscences from my diary

Sep 20, 2025
Saturday 0115 IST
Murugeshpalya, Bangalore


एक खेल खेलें ?
जो अक्सर खेला करते हैं 

कि मैं कुछ सवाल पूछूँ तुमसे 
अगर सब जवाब सही 

तो सारी धरती तुम्हारी 
और 'गर एक भी सवाल से चूके 

तो चाँद मेरा 
बोलो, मंज़ूर है ?

इस बार जीतना मुश्किल हो सकता है  
ख़ैर देखते हैं  ...तो बताओ -

एक रंग की तितलियाँ 
किन जंगलों में पाई जाती हैं ?

मुसलसल ढलता सूरज 
उदास क्यों दिखता है ?

खुद से किया वायदा खुद ही तोड़ डालो 
तो कितना पाप लगता है ?

इंद्रधनुष को कितनी देर 
मुट्ठी में बंद किया जा सकता है ?

पूस का कुहासा और बहमाया कबूतर 
एक से क्यों लगते हैं ?

क्या जुगनू जला सकते हैं 
पुरानी तसवीरें, और पुराने खत ?

क्या अख़बारों में छपे इश्तिहार 
ढूँढ सकते हैं भूले-बिसरे चेहरे ?

कैसे खोजा जा सकता है उस लम्हे को 
जिसके गुज़रते ही हुम गुज़र जाते हैं ?

अधूरी कविताओं और अनकही पीड़ को 
कौन देता है मुक्ति ?

क्यों मियाँ? कहा था न
इस बार जीतना मुश्किल हो शायद 

अच्छा चलो 
अब आखिरी आसान सवाल 

मैं तुम्हें फिर कभी 
दिखाई क्यों नहीं दिया ?