The Fragrance of the October
Reminiscences from my diary
Sep 28, 2025
Sunday, 1900 IST
Murugeshpalya, Bangalore
कार्तिक पूर्णिमा
दुर्गा अष्टमी
अहोई पूजन
विजयादशमी
काली पूजा
धनतेरस
दीपावली
गोवर्धन
भाईदूज
मैंने आँखें बंद की
और मेरे सामने
छितरा गईं
त्योहारों की टोकरी
पोटली में बंधी शामें
मुट्ठी भर यादें
अब तुम भी
आँखें बंद करो
और सोचो
पूस की रात
ठिठुरती पसलियाँ
रात भर जलता अलाव
जब किसी पहर रह जाए
कतरा भर आँच, और ओस में
भीग जाएँ दम तोड़ते कोयले, तब
एक सीला धुआँ उठता है
कुछ सन्नाटा, कुछ टीस,
कुछ गमक लिए
सुनो, जिन शामों की,
और यादों की
मैं बात कर रहा हूँ
मुझे उनसे वैसी ही
बिलकुल उस धुएँ जैसी ही
गंध आती है
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