Saturday, 25 April 2015



Alas! You faded away, again!


Reminiscences from my diary
Nov 22, 2014 Saturday
9:15 PM
Murugeshpalya, Bangalore


रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से -
मन बोझिल - सा था ,
पिछले  कुछ दिनों से !
आज शाम भी जब ,
उदासीन - सा मैं -
- ऑफिस से निकला -
- तो कुछ अनमना - सा था !
पर , सामने नज़र पड़ी तो देखा -
- गुलमोहर के पेड़ से सटा -
- तू खड़ा था ,
और हमेशा की तरह -
- मुस्कुरा रहा था !

न जाने कब से इंतज़ार कर रहा था तू !
उस एक पल , साँस में साँस आ गयी थी ,
मानो -
सारी थकान -
सारी चिड़चिड़ाहट -
पीछे 'गोल्फ कोर्स ' के तालाब से आती -
- ठंडी हवा -
- अपने साथ बहा ले गयी हो !

सड़क पार कर तेरे पास आया-
- और, बातों का सिलसिला -
- कुछ ऐसा शुरू हुआ ,
जैसे कब से दबी हों , और -
बाहर आने के लिए ,
या यूँ कहूँ -
- तेरे सामने बाहर आने के लिए -
- झटपटा रहीं हो !

डूबते लाल सूरज की हल्की लाल रोशनी में -
- झीनी धूप के साये -
तुझते बातें करते करते -
तेरी बातें सुनते सुनते -
शिकायतें करते करते -
गप्पे लड़ाते लड़ाते -
नग्में गाते गुनगुनाते -
और , रास्ते में आते -
शिव के -
काली के -
साईं के मंदिरों पर -
- माथा टेकते टेकते -
कब वापसी का इतना लम्बा सफर -
- मिनटों में तय हो गया -
पता ही न चला !
चलता भी कैसे -
तू जो था साथ !
बीच बीच में ,
कभी कोई उड़ान भरता हवाई जहाज -
हमारी बातें भंग करता -
- तो कभी पीछे कहीं -
- बहता सलिल गूँज उठता !

अभी पुलिया आने ही वाली थी -
- कि अचानक से,
पीछे से आती किसी गाड़ी ने -
- एक तीखा , लम्बा हॉर्न दिया !
पीछे मुड़ा तो गाड़ी वाले का -
- तमतमाया चेहरा देखा  …
और, वापस मुड़कर देखा -
तो आज भी मैं , अकेला ही -
- ऑफिस से घर जा रहा था  … !





Tuesday, 10 February 2015

An exquisite fear


Reminiscences from my diary
Sept 23, 2011
2:30 A.M.
GFC, IISc, Bangalore


आज भी एक रेशमी धुंधलका - सा है ,
जब याद आता है -
- रस - वितान , संज्ञाहीन चीड़ के ठूंठों से -
झाँकता चाँद -
और, उससे आलिंगन की चाह रखता -
उस नदी का सलिल -
तब नहीं जानता था -
गंगा थी , यमुना थी , या ब्यास -
मुझे तो बस, वह गर्जनाद -
वह शोर याद आता है -
पत्थर भी मानो , कांप रहे थे -
और, कांप रहा था -
मैं भी  …
पर सर्दी से या भयावहता से -
नहीं जानता !
चारों ओर शांत, श्वेत पहाड़ -
ऊँचे - ऊँचे -
और नीचे , वे उर्मियाँ , वे  पाषाण -
मणिकरण के गुरद्वारे के उस छज्जे पर -
एक अलग - सा डर-
एक अलग - सी दहशत महसूस की थी !
वही खूबसूरत - सा डर -
वही खूबसूरत - सी दहशत -
फिर से महसूस करना चाहता हूँ !







Saturday, 31 January 2015


Waters of the Sukhna, Reminiscences - 4


Reminiscences from my diary
Jan 7, 2011, 11:30 p.m.
A 118, Thapar, Patiala

जब दस साल पहले ,
सुखना ताल -
निर्जन - सा -
नैसर्गिक - सा हुआ करता था  …
जब उस उन्मुक्त सलिल , और -
खुले आसमान के बीच -
ठंडी हवा बौरा जाया करती थी  …
तब उस सुन्दर शाम में -
ठिठुरती सर्दी में -
सीढ़ियों के पास-
उस बौराई पवन से -
आलिंगन की चाह में -
खुला मन और खुली बाहें -
एक कल्पना संजो रही थी !
तभी -
वापसी की पुकार आई -
मैं तो लौट आया , पर -
आधी अधूरी -सी -
गीली - सी -
बौराई - सी -
वह कल्पना वहीँ रह गयी !
बुनना चाहता हूँ , उसी कल्पना को -
और , संजो कर रखना चाहता हूँ उसे -
सदा -सदा के लिए !





Monday, 26 January 2015

Friends on the terrace, Reminiscences - 3



Reminiscences from my diary
Jan 6, 2011
8 PM
A 118, Thapar, Patiala


सर्दी की गुनगुनाती शाम में -
छत पर -
जियोग्राफी में -
सवाना पढ़ते पढ़ते -
जब शॉल में लिपटी नज़र -
अनायास ही पड़ गयी थी -
सामने की अटारी  पर चढ़ी -
उस लड़की पर -
आठ नौ साल की थी शायद -
जो कितनी मासूमियत से -
अपने पड़ोसी हमउम्र दोस्त से -
बतिया  रही थी  …


और  … उधर ,
उधर  -
शाम की बढ़ती सर्दी से ठिठुरता सूरज -
भागा जा रहा था -
किसी रजाई की खोज में -
अपना रक्त फैलाता हुआ !
मेरी एक नज़र वहाँ ठहर गयी थी -
उस जोड़े पर -
उस बचपन पर -
उस अटारी पर  … !
शायद  आज भी -
मुझे इंतज़ार रहता है -
उस नज़र का !
वो नज़र , वो शाम -
- फिर से पाना चाहता हूँ ! 

Sunday, 25 January 2015


                A moment with the half moon, Reminiscences - 2


Reminiscences from my diary
Sept 22, 2011
3 A.M.
GFC, IISc, Bangalore


दिसंबर की वह सर्द रात  …
जिसे मनाली की बयार -
- और भी सर्द बना रही थी -
होटल की तीसरी मंज़िल के ऊपर ,
वह छत -
नीचे, बौद्ध चैत्य -
सामने कहीं से आती कुत्तों की सर्द आवाज़  … !
अनायास ही शरीर में ,
और-
मन में भी -
एक कम्पन सी होने लगी थी !
सामने बर्फ से ढके पहाड़ -
कुछ आधे चाँद की पूरी ज्योत्सना में -
नहा चुके थे -
और कुछ -
नहाने की तैयारी कर रहे थे , शायद !
पीछे भाई खड़ा था -
मुझे देख रहा था , या -
पहाड़ों को , पता नहीं !
आँखें निर्निमेष दूर उन शिखरों  पर टिकी थीं -
क्या ढूंढ रहीं थीं , पता नहीं !
और तन , तन तो अभी भी मन के साथ -
कांप रहा था !
वह कम्पन,
वह आधा चाँद ,
फिर से चाहता हूँ -
- जो पहाड़ों से घिरी -
उस छोटी सी छत पर -
कहीं छूट  गए हैं !

Monday, 19 January 2015

              'The' moment, Reminiscences - 1


Reminiscences from my diary
Sept 27, 2011 Tuesday
10:00 P.M.
Library, IISc, Bangalore


रात करीब ढाई बजे -
जब सलिल सो गया था -
जब आस पास की बत्तियाँ भी बुझती जा रहीं थीं -
जब मन में एक अजीब - सी सिरहन -
एक अलग - सी अनुभूति हो रही थी -
कुछ डर , कुछ हर्ष , कुछ आश्चर्य -
गोद में वह छोटा - सा तकिया -
और उस नीले कम्बल में खुद को लपेटकर -
कानों में 'इयर-फ़ोन्स' , जिनसे -
कोई ' वेस्टर्न इंस्ट्रुमेंटल ' मिश्री - सी घोल रहा था -
नीचे एकटक देखता रहा -
देखता रहा -
दिल्ली की उन रोशनियों को -
जो धीरे - धीरे बिन्दुओं में परिणत होतीं जा रहीं थीं -
आज दिल्ली बहुत सुन्दर दिख रही थी -
पहली बार  …
और,
पहली बार  …
मैं भी जा रहा था -
सात समुन्दर पार -
'उस पहली बार ' के उन पहले पलों को -
फिर से महसूस करना चाहता हूँ -
जीना चाहता हूँ -
उठाना चाहता हूँ  सलिल को -
दिखाना चाहता हूँ उसको छोटी - सी दिल्ली -
और,
रखना चाहता हूँ गोद में -
फिर से,
उस पहली उड़ान के पहले तकिये को  .... !


Wednesday, 31 December 2014

PHOENIX 


Reminiscences from my diary
December 26, 2014, Friday
10:00 p.m.
Varick Villa, Alleppey, Kerala

आज -
कुछ अलग - सा हुआ !
आज -
एक तजुर्बे ने -
कहीं , वक़्त के किसी खँडहर में -
दम तोड़ चुकी -
एक कल्पना से -
मुलाक़ात की !

एक मुलाक़ात -
पहरों की परिधि से परे -
स्मृतियों के दंश से परे -
शायद  सोचा भी न था  …
दिसंबर की एक शाम होगी -
और,
मेरी डायरी में लिखी, दबी -
भूली बिसरी कुछ पंक्तियाँ -
सजीव हो जाएँगी !

आज -
शब्दों के ताने - बाने से बुनी  -
शब्दों के ही ताने - बाने से सजी -
उस एक कल्पना को , मानो -
पंख लग गए थे !
एक उल्लास -
एक ख़ुशी -
एक मुस्कान -
और,
वही हवा ,
वही रेत ,
वही उर्मिल ,
वही कंकण ,
वही आसमान ,
और-
वही सलिल !