Saturday, 23 September 2023

Once upon an evening; once upon a night

Reminiscences from my diary
Sunday, Sep 24, 2023
0200 IST
Murugeshpalya, Bangalore


मैंने एक शाम अरब सागर में
बहुत दूर जाती नौका को
बहुत देर तक ताका था 

मैंने एक ठिठुरती रात
सीले बुझते कोयलों की खुशबू को 
पहरों पहर पिया था 

मैंने एक शाम बितायी थी 
कई किताबघरों में पर फिर भी 
नहीं बन पाया था कोई कहानी 

मैंने एक रात पढ़ी थीं कई कविताएँ 
उलझा रहा था नींद और सपनों तक 
विस्थापना की आव-तानी में 

मैंने एक शाम चलना शुरू किया था 
चुप्पियों से बने पुल पर 
फिर पुल बन गया था खाई 

मैंने एक रात अमृता की नज़्मों में 
टाँक दिए थे यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ 
पारिजात ही पारिजात 

मैंने एक शाम दीया-बाती पर रोपा था 
एक बीज प्रार्थना का
दिसंबर हो जाए अंतर्धान 

मैंने एक रात सलिल से सींची थी 
लौटने की संभावनाओं को 
इति करनी की समीधा 



The Game of Just Like That

Reminiscences from my diary

Sunday, Sep 24, 2023
0100 IST 
Murugeshpalya, Bangalore

हो यूँ कभी कि 
मेरी हथेलियों की धमनियों में 
लाल हो जाए नील 
नाखूनों में ठहरें 
कई कई चाँद 
लकीरों में टूटें 
तारे यहाँ वहाँ  .. 

.. तुम रोपों
 मन्नतें 
फिर ढूँढो अक्स पानी का
आसमान में 
लुढ़क जाए सूरज 
तुम छिपा लो उसको 
कोटर में आम की  .. 

.. और चिकुटी काटो मुझे 
माँगो मुझसे 
गोधूलि में ओस 
एक टूटी नाव 
और ढेर सारा काश
मैं भर दूँ तुम्हारा बस्ता 
बिन पते की चिट्ठियों से  .. 

.. हो यूँ कभी कि 
खेल खेल में रखें हम 
हथेली पर हथेली 
ओक पर ओक
और रह जाए एक 
बस एक 
ब्रह्माण्ड  .. 

.. 



Wednesday, 6 September 2023

You sure you know how to love?


Reminiscences from my diary

Sep 06, 2023 Wednesday
2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore


सुनो!
कभी जन्माष्टमी की बारिश में 
तर हुए हो?

चेरापूँजी के आसमान में 
ढूँढे हो पूरा चाँद?

ताके हो कोई समंदर पहरों-पहर 
बिना पाँव भिगोए?

या गिनो हो कभी अपनी छत पर बिखरे 
कबूतरों के पंख?

कड़ी धूप नापे हो 
रानीखेत के ओर-छोर?

उगाए हो नीलगिरि के फूल 
अपनी बाल्कनी, अपने आँगन?

बिताए हो पूरी साँझ बिना चूँ किए 
अरविन्द की इमली के नीचे?

भटके हो दिल्ली, लन्दन, जापान 
खाली आँखें, खाली मन, खाली मुस्कान?

सुनो हो लूप पर कोई गाना या धुन
१००८ बार या उससे भी ज़्यादा?

मुराकामी पढ़ते-पढ़ते
फ़फ़ककर रोए हो?

या उठे हो कभी आधी रात गहरी नींद से
और पलटने लगे हो तस्लीमा?

चलती सड़क गिरे गुलमोहरों को 
जेब में भरे हो?

हथेलियों में रोपे हो 
काँटे?

पिए हो, जिए हो साँस-साँस 
अपनी पीड़?

साईं को एकटक देखते-देखते
बुद्ध बने हो कभी?

नशा किये हो 
अपना?
.

सुनो मियाँ!
अगर ये सब नहीं किये हो 
तो क्या ख़ाक इश्क़ किये हो?!

 

Friday, 1 September 2023

One Fine Day

Reminiscences from my diary
Friday 1900 IST
Murugeshpalya, Bangalore


एक दिन

उग आएँगे चाँद पर 
सतपुड़ा के जंगल  
झींगुर टिमटिमाएँगे 
सावन गाएँगे जुगनू 

एक दिन 

घुल जाएगा सूरज लौ में 
शमी के आस-पास कहीं 
रात में खिलेंगे 
कई-कई धनक

एक दिन 

मछलियाँ खेलेंगीं 
पोषम-पा और 
गौरैया के नीड़ होंगे
समंदर 

एक दिन 

स्वयं बुद्ध खोजेंगे 
सुजाता
मृत्युंजय डमरू छोड़
छेड़ेंगे बाँसुरी 

एक दिन 

किरदार सभी शिवानी के 
किताबों से बाहर आ जाएँगे 
और सभी चिट्ठियाँ
पहुँच जाएँगी सही पतों पर 

एक दिन 

भर जाएगी ओक तुम्हारी 
हरसिंगार से
ठहरेगा तुम्हारी आँख में 
मेरी आँख का पानी 


Tuesday, 22 August 2023

The five elements

Reminiscences from my diary
Aug 22, 2023
Tuesday, 2215 IST
Murugeshpalya, Bangalore


मेरा आकाश -
जल से -
मथा है 
जल -
अग्नि से -
जला हुआ 
अग्नि में -
पृथ्वी -
समीधा - सी 
मेरी पृथ्वी -
पृथ्वी होने का -
भ्रम है 
जैसे -
किसी नक्षत्र की -
वायु, और 
व्यान के शून्य में -
शिव होता -
मेरा आकाश 

मैं और मेरे पंचतत्त्व 
ब्रह्माण्ड की समस्त प्रेतात्माओं का 
प्रपंच हैं !

Monday, 21 August 2023

Fireflies on my skin!


Reminiscences from my diary

Aug 21, 2023
Monday 2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore


किसी-किसी शाम 
                    मेरी देह पर 
कहीं-कहीं से आकर 
                     रुक-रुक जाते हैं
कई-कई जुगनू 
                

जुगनू-जुगनू 
          कोई भूली तारीख़
जुगनू-जुगनू
          कोई बिसरा चेहरा 
ताकूँ टुकुर-टुकुर 


घुल-घुल जाएँ रोशनियाँ 
                    और उनकी सरगम                             
साँस-साँस में 
                आस-आस में 
टिमटिम-टिमटिम 


जब-जब करूँ 
             कोशिश छूने की     
कुछ-कुछ हवा 
                कुछ-कुछ पानी 
जुगनू बन जाए बुलबुला 
                   

मेरी देह पर 
            देह नहीं दिखती 
रेशा-रेशा पानी का ज़ख़्म 
                            ज़ख़्म से रिसती 
धीमी-धीमी आँच    
                
                      


Friday, 16 June 2023

Whenever you come..

Reminiscences from my diary

June 16, 2023
Friday 2015 IST
Murugeshpalya, Bangalore


आने को तो कोई भी 
कभी भी
कहीं भी 

कैसे भी 
आए पर तू
आना यूँ
 
जैसे 
मूसलाधार बरसात को देख 
झरते हैं 

आँसू 
जैसे 
धमकता है धनक 

गीली धूप ओढ़े 
जैसे 
फ़ाल्गुन से छनती 

टेसू की महक 
जैसे 
बियाबाँ मोहल्ले में अचानक 

बजी हो साँकल 
जैसे 
चलते-चलते टकराए 

भूला बिसरा चेहरा 
जैसे 
चीरापुंजी के आसमान में 

पूरा का पूरा चाँद 
जैसे 
किसी अधूरी कविता से झड़ा 

एक-आधा खोया छंद  
जैसे 
एक रात लद जाता है ठूँठ 

सौ-सौ हरसिंगार से 
जैसे 
बीस साल पुरानी किताब में मिल जाए 

किसी सफ़र का टिकट
हाँ! तू - 
ऐसे ही, यूँ ही, आ जाना 

जैसे 
बुद्ध को बुद्ध बनाने आयी थी
एक सुजाता