Saturday, 13 January 2024

Listen O Moon!

Reminiscences from my diary

Jan 14, 2024
Sunday, 0015 IST
Murugeshpalya, Bangalore


बहुत दिनों के बाद रात की सैर वापस शुरू की। पूस की सर्द हवा में फैली रात-रानी का ज़ायका ले ही रहा था कि अचानक से ख़्याल आया - 

अरे! 
मैंने
कब से
नहीं देखा
तुम्हें !!

ऐसे
कैसे ... 

... जब यह ख़्याल आया  कि मैंने तुम्हें कब से नहीं देखा तो मैं घबरा-सा गया। यूँ तो कितने ही दिन बीत गए बिना कुछ लिखे हुए - न कश्मीर और उसके पीर-पंजलों के बारे में लिख पाया , न इमरोज़ के जाने का ग़म उकेरा, न रूमी के आने की ख़ुशी ज़ाहिर की, न ही रानीखेत की पगडंडियों में एक बार फिर खोने के बारे में डायरी से कुछ साझा किया ! बस एक लिस्ट बनाता जा रहा था कि जब मन करेगा तब लिखूँगा ! पर अभी इस एक पल  ... 

... जब यह ख़्याल आया कि मैंने तुम्हें कब से नहीं देखा तो मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ ! मन कर रहा है कि तुम्हें इतनी चिट्ठियाँ लिखूँ , इतने पोस्टकार्ड भेजूँ कि तुम्हारी नाक में दम कर दूँ। कितने ही दिन बीत गए तुमसे बात किये हुए, इतनी बातें इकट्ठी हैं कि कहाँ से शुरू करूँ, नहीं जानता ! ख़ैर  ... मैं तो मैं  ... मैं तुम्हें नहीं देख पाया तो मियाँ तुम ही देख लेते !! इतनी तो साझेदारी है ही अपनी ! या तुम बस गुलज़ार के ही हो ? यूँ न करो ! आख़िर मैंने भी बड़ी शिद्दत से तुम्हें कितनी ही जगह टाँका है, तुम्हें उन सब जगहों का वास्ता ... 

... जब यह ख़्याल आया कि मैंने तुम्हें कब से नहीं देखा तो एक आँख से बेचैनी फूट रही है और एक से शिकायत। तुम्हें तो पता है कि कैसे दोनों आँखों के रास्ते तुम मेरे पोर-पोर में उजास भरते हो, उन्माद भरते हो, भरते हो उम्मीद, मन की हूकों को सहने का लेप ! तब भी तुम गायब रहे ? वह भी इतना सारा ? अब तुम भी यूँ करोगे तो कैसे साँस आएगी ? आड़ा-तिरछा, आधा-पौना मुँह ही दिखा देते ! अब समझा कि आजकल आँख का पानी इतना खारा क्यों है  ... 

... जब यह ख़्याल आया कि मैंने तुम्हें कब से नहीं देखा तो बहुत-सी यादें - जो तुमने मुझसे लेकर अपने पास अपनी कोटरों में सहेजकर रख लीं थीं - अचानक ही सुलगने लगीं हैं, और मुझे लगता है सुबह तक मेरी हथेलियों पर छाले होंगे।  पर तुम्हें क्या ? तुम रहो अपने कोप-भवन में ! अल्मोड़ा के साफ़ आसमान में करोड़ों तारों की टिमटिमाहट की तारीफ़ की थी मैंने।  तुम्हें नहीं पूछा था।  कहीं इसलिए तो  ... 

... जब यह ख़्याल आया कि मैंने तुम्हें कब से नहीं देखा तो मैं शिव को अर्ज़ी लगा रहा हूँ कि मना लें तुम्हें  ... कि एक बार फिर तुम मेरे साथ-साथ रहो, मेरे साथ-साथ चलो  ... कि फिर से मेरे साथ गली में बिखरी रात-रानी की गंध चखो  ... कि फिर से मेरे साथ डॉक्टर-साब के घर के बाहर बिखरे हरसिंगार के फूल चुनो  ... कि फिर से मेरा सपना बनो  ... और फिर से, एक बार फिर से मेरी भोर बुनो  .... 



Tuesday, 5 December 2023

Kashmir Diaries, Day 01

Dec 02, 2023, Saturday
2050 IST
Dal Lake, Srinagar

हाउसबोट की बाल्कनी में बैठा हूँ। एक सुन्दर नीरवता चारों ओर। बीच - बीच में कोई शिकारा पास से गुज़रता है तो लहरें चहचहा उठती हैं। जहाँ बैठा हूँ, वहाँ से साफ़ - साफ़ पहाड़ की चोटी पर शंकराचार्य मंदिर दिख रहा है। शाहिद बता रहा था, वहाँ से पूरा श्रीनगर, और काफ़ी सारा पीर-पंजाल भी दिखता है। कल या परसो जाऊँगा। 

अभी भी याद कर रहा हूँ दो घंटे पहले के उस मंज़र को। दिल्ली से जहाज ने कब उड़ान भरी, हमेशा की ही तरह मुझे पता नहीं चला, और जब आँख खुली तो खिड़की के बाहर सफ़ेद चोटियों से घिरा एक तालाब था। मज़े की बात तब हुई जब जगे हुए लोग भी कयास लगाने लगे कि ये बादल हैं या कोई तालाब !

कम्कम्पाती सर्दी  ... दूर दूर तक पानी में मचलता सन्नाटा  ... दिसंबर का महीना  ... !

आँखें मूँदूँ तो पानी  ... आँखें खोलूँ तो पानी  ... !!

Friday, 17 November 2023

सप्तर्षि 

Reminiscences from my diary
Nov 17, 2023, Friday
2030 IST
Murugeshpalya, Bangalore


क्या
किसी के दुःखों को 
मन से 
मन में आश्रय देना 
संसार की सबसे सुन्दर
अभिव्यक्ति 
कही जा सकती है ?

क्या 
स्मरण - शक्ति के 
समाप्त होने पर 
स्मृतियाँ विलुप्त होने पर 
एक लेखक 
लेखक
रह जाएगा?

क्या 
रात्रि के
किसी गहन पहर 
अनायास नयनों का
असीम झरना 
रोप सकता है 
एक नया धुला प्रभात ?

क्या 
किसी का जाते हुए 
पीछे छुटी 
हथेलियों की ओक
गुलाब से भर देना 
विरह की पीड़ा 
कम कर सकता है ?

क्या 
मौन साधने से
तथागत,
मैत्रेय 
और सुजाता -
तीनों 
सध जाते हैं ?

क्या
मूक प्रार्थनाओं के 
अवशेष 
और उनकी ऊष्मा 
एक कविता का 
सृजन 
कर सकते हैं ?

क्या 
मृत्तकों के समान 
अनुत्तरित प्रश्न भी 
गंगा से होते हुए 
ब्रह्माण्ड के
तारे बन
टिमटिमाते हैं ?



Wednesday, 15 November 2023

The Evening Harsingars

Reminiscences from my diary

Nov 15, 2023
Wednesday, 2235 IST
Murugeshpalya, Bangalore

एक बार
यूँ ही पारिजात - सा 
माना था तुम्हें 

जब माना था
जाना नहीं था
महज़ मानना भी हो सकता है 
हो जाना 
हो ही जाना 

अब न फूल 
अब न तुम 

है तो बस 
उतरा हुआ 
सिन्दूरी
मेरे नाखूनों पर 
ठहरा हुआ 
गहरा हुआ 

पारिजात - सा होना 
रोग है 

पारिजात होना 
जोग !




 

Monday, 6 November 2023

Rains, incessant the

Reminiscences from my diary

Nov 06, 2023
Monday, 2230 IST
Murugeshpalya, Bangalore

शिउली की
गंध में मगन मूसलाधार
पानी कुछ यूँ 
बरस रहा है कि 
डबडबाई नींद का हर 
टुकड़ा 
तालाब हुआ जाए 
तालाब की
काई में कई कई 
रतजगे
हर रात का एक
चाँद 
हर चाँद की एक
आह और हर 
आह से फट जाए 
बादल का एक 
टुकड़ा 

बरसात 
मूसलाधार बरसात 



Friday, 3 November 2023

अक्षरधाम 

Reminiscences from my diary

Nov 03, 2023
Friday, 2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore


जेठ की तपन
उतरती तेज़ धूप 
ठंडे चितकबरे फ़र्श
ठंडी लाल दीवारें 

पग के पीछे पग 
साये में उलझता साया 

लम्बे तंग गलियारे 
सहमी सुन्दर नक्काशियाँ 
झरोखों की लड़ी 
रोशनी और आँख-मिचौनी 

बहते पसीनों पर 
फव्वारों की फुहारें 

**

उस ढलते पहर में 
ब्रह्मा - विष्णु - शिव की
संरचनाओं के बीच 
घुल गयी थी कुछ कुछ
तुम्हारी गमक
कुछ कुछ तुम्हारा नाम 
और
एक चाँद

अब मेरी शामें उस एक -
 - साँझ की चुकती किस्तें हैं !

Saturday, 23 September 2023

Once upon an evening; once upon a night

Reminiscences from my diary
Sunday, Sep 24, 2023
0200 IST
Murugeshpalya, Bangalore


मैंने एक शाम अरब सागर में
बहुत दूर जाती नौका को
बहुत देर तक ताका था 

मैंने एक ठिठुरती रात
सीले बुझते कोयलों की खुशबू को 
पहरों पहर पिया था 

मैंने एक शाम बितायी थी 
कई किताबघरों में पर फिर भी 
नहीं बन पाया था कोई कहानी 

मैंने एक रात पढ़ी थीं कई कविताएँ 
उलझा रहा था नींद और सपनों तक 
विस्थापना की आव-तानी में 

मैंने एक शाम चलना शुरू किया था 
चुप्पियों से बने पुल पर 
फिर पुल बन गया था खाई 

मैंने एक रात अमृता की नज़्मों में 
टाँक दिए थे यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ 
पारिजात ही पारिजात 

मैंने एक शाम दीया-बाती पर रोपा था 
एक बीज प्रार्थना का
दिसंबर हो जाए अंतर्धान 

मैंने एक रात सलिल से सींची थी 
लौटने की संभावनाओं को 
इति करनी की समीधा