Thursday 23 January 2020

अमृता की कविताएँ  (6 / 8)

स्टिल लाइफ़

यह जलियाँवाला -
और उसकी दीवार में
चुपके से बैठे गोलियों के छेद
यह साइबेरिया -
और उसकी ज़मीन पर
चीखों के टुकड़े बर्फ़ में जमे
कंसन्ट्रेशन कैम्प -
इंसानी माँस की गंध
भट्टियों की राख में सोयी
यह करागुयेवाच -
जिसकी कुल आबादी
एक पत्थर के बुत में सिमटी
यह हिरोशिमा है -
जो एक कोने में एक फटे हुए
दस्तावेज़ की तरह पड़ा है
और यह प्राग -
जो साँस रोके आज
सेंसर की मुट्ठी में बैठा है।
हर चीज़ चुप और अडोल है
सिर्फ़ मेरी छाती में से
एक गहरी साँस निकलती है
और धरती का एक टुकड़ा
हिल - सा जाता है।

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