Friday, 31 January 2025

Shards Shards Everywhere!

Reminiscences from my diary

Jan 31, 2025
Friday 2130 IST
Murugeshpalya, Bangalore


किर्चियाँ हैं 

अजीब सीं 
बहुत सारी 
बहुत ही सारी 

इधर उधर 
यहाँ वहाँ  
सिमटी हुईं, बिखरी हुईं 

ठीक ठीक नहीं पता 
हैं भी, या महज़ 
महसूस होती हैं 

बिस्तर पर 
तकिये पर 
मेज पर 

बुद्ध के स्टेचू पर 
लैंप-पोस्ट की रोशनी में 
बिखरी किताबों के आस-पास 

डायरी में 
घड़ियों में 
कैलेंडर की तारीखों पर 

खिड़की के पर्दों पर 
चौखट के ऊपर 
दरवाज़े की ओट में 

मनीप्लान्ट पर ठहरे पानी में 
मोगरे की मिट्टी में 
उजड़े गुड़हल की गंध में 

मंदिर में 
देवताओं की तस्वीरों पर 
प्रार्थनाओं की चुप में 

आँख नोचती धूप में 
सिर से गुज़रते आसमान में 
साँस में, साँस -साँस में 

होठों पर 
नाखूनों में 
छाती के अंदर कहीं 

घाव-घाव घुसती 
पोर-पोर पिरती 
रेशा-रेशा रिसती 

किर्चियाँ 
किर्चियाँ 

!!




Wednesday, 29 January 2025

Can you be a killer? Yes, you can!

Reminiscences from my diary

Thursday, Jan 30, 2025
Murugeshpalya, Bangalore

सुनो
अगर तुम किसी को मारना चाहते हो 
तो यूँ करो
कि उसे मरा हुआ मान लो 

काफ़ी सादी पर मज़ेदार तरकीब है 
उस पर भी -

अमुक व्यक्ति 'गर तुम्हारे उन्स में हो 
बेपनाह बेहिसाब 
तो ख़ूब  मौके मिलेंगे तुम्हें 
बिना हाथ रंगे

क़त्ल करने के 
एक बार नहीं, कई-कई बार 

सामने वाला 
सब कुछ जानते-सुहाते भी 
मरता रहेगा रोज़, तसल्ली से 
एक बार, कई बार, हर बार 

समेटअपना सारा इश्क़ 
अपनी बुशर्ट की जेब में 

और 'गर वह रोये या हँसे 
तो ग़ौर न मनाना 
चुपचाप झूठमूठ 
बहरे हो जाना 

लेकिन यूँ बताओ ज़रा 
क्या करोगे ऐसे में कि 

जब-जब तुम मारो उसे 
तब-तब लग जाए हिचकी, तुम्हें,
न एक, न दो,  मगर 
बेपनाह बेहिसाब 

मियाँ 'गर यूँ हुआ तो फिर यूँ होगा कि 
अपने जुर्म के 

तुम आप ही गवाह हो जाओगे 



Sunday, 26 January 2025

The sky and its void

Reminiscences from my diary

Jan 27, 2025
Monday 0020 IST
Murugeshpalya, Bangalore

मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि 
आसमान क्या है
किससे बना है 

बादलों से
नक्षत्रों से
देवताओं से
उनको दी जाने वाली करोड़ों पुकारों से

या फिर
अपने ही खालीपन से?

खालीपन का भी कोई नाम होता है ?
या कोई रंग? 
कैसा दिखता है? आसमान जैसा?
क्या मैं भी किसी खालीपन से बना हूँ?
क्या मेरे खालीपन का भी कोई नाम, कोई रंग है?
क्या एक ही खालीपन मुझे और आसमान दोनों को बनाता है?

सवाल हैं
यूँ ही
अजीब से 
कभी भी, कहीं से भी आ जाते हैं 

जवाब नहीं आते

एक ठंडी आह भरता हूँ 
वह जा मिलती है 
आसमान में  

बादल घिर आते हैं 
मैं फिर कुनमुना-सा हो जाता हूँ 
.. 

क्या मैं ही आसमान हूँ?