Shards Shards Everywhere!
Reminiscences from my diary
Jan 31, 2025
Friday 2130 IST
Murugeshpalya, Bangalore
किर्चियाँ हैं
अजीब सीं
बहुत सारी
बहुत ही सारी
इधर उधर
यहाँ वहाँ
सिमटी हुईं, बिखरी हुईं
ठीक ठीक नहीं पता
हैं भी, या महज़
महसूस होती हैं
बिस्तर पर
तकिये पर
मेज पर
बुद्ध के स्टेचू पर
लैंप-पोस्ट की रोशनी में
बिखरी किताबों के आस-पास
डायरी में
घड़ियों में
कैलेंडर की तारीखों पर
खिड़की के पर्दों पर
चौखट के ऊपर
दरवाज़े की ओट में
मनीप्लान्ट पर ठहरे पानी में
मोगरे की मिट्टी में
उजड़े गुड़हल की गंध में
मंदिर में
देवताओं की तस्वीरों पर
प्रार्थनाओं की चुप में
आँख नोचती धूप में
सिर से गुज़रते आसमान में
साँस में, साँस -साँस में
होठों पर
नाखूनों में
छाती के अंदर कहीं
घाव-घाव घुसती
पोर-पोर पिरती
रेशा-रेशा रिसती
किर्चियाँ
किर्चियाँ
!!