For Babusha, and her letters
Reminiscences from my diary
Feb 27, 2025
Thursday, 2015 IST
Murugeshpalya, Bangalore
बावन चिट्ठियाँ थीं
बावन कबूतर
बावन ही हवा के झोंके
किस्से, कहानियाँ और
मुस्कुराहटें
पीछे रह गयी
ख़ाली मेज़
बची-कुची स्याही
छाती में दबी चीख
ढेर सारा अवसाद
परछाइयाँ
और
किरच-किरच मैं !
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