Silence translated
Reminiscences from my diary
Dec 22, 2025
Monday 2045 IST
Murugeshpalya, Bangalore
जेरेनियम के फूल उगते हैं - एक, दो, तीन, गुच्छे के गुच्छे, कई कई रंगों के,
फिर एक दिन उड़ जाते हैं - पंखुड़ी - पंखुड़ी, धीरे - धीरे, चुपचाप
कोई नहीं जान पाता
न मैं, न ओस, न आस-पास रहतीं मकड़ियाँ
बहुत सारे पोस्टकार्ड्स, बहुत सारे बुकमार्क्स
एक कविता से दूसरी कविता, एक किरदार से दूसरा किरदार
मौसम-मौसम, दुनिया-दुनिया, निशान-निशान
इतनी छलाँगे और एक चूँ तक नहीं
तथागत की मुस्कान, फटी तस्वीर से झाँकते नानक
सफ़ेद पोशाक में नाचता दरवेश
तीन नीले कुशन
एक मोमबत्ती खुशबूदार
ऐक्रेलिक में कैद पानी, पानी में कैद मछलियाँ
एक से दस नंबर के पंद्रह पेंटब्रश
धूल, रंग, रंगों से सने नाखून
कुछ खाली फ्रेम
पोर्सिलेन का मग, मग पर हिमालय, हिमालय पर गिरती धूप
कांच से झाँकता बुराँश
मिटटी के कुछ दीये
हरे काँच का एक कछुआ
माँ के दिए बर्तन
लौंग, हींग, शहद, नमक
रसोई की खुली खिड़की
खिड़की से झाँकती आँखें दो
जो अब नहीं हैं, उनकी चिट्ठियाँ, उनके दस्तख़त
दो फोटो एल्बम, एक बुशर्ट, बुशर्ट का आधा बटन
सूखे महँगे पेन, पुरानी डायरियाँ, कैलेंडर
ग्रीटिंग कार्ड्स
तुम सच कहीं थीं बाबुषा
दुनिया में सबसे ज़्यादा अनुवाद मौन का हुआ है
No comments:
Post a Comment