Wednesday, 25 December 2024

Japan

Reminiscences from my diary

Dec 25, 2024
Wednesday 2145 IST
Murugeshpalya, Bangalore


... कि गुनगुनी धूप में छाँव ढूँढ़कर साइकिल खड़ी की 
और एकाएक बर्फ़ गिरने लगी 

... कि पसरी पड़ी थी दिसंबर की एक दोपहरी 
और फिर बिना साँझ हुए ही रात हो गयी 

... कि एक पहाड़ था, उस पर एक आसमान कुनमुना
फिर कुनमुने आसमान पर एक-चौथाई चाँद टंक गया 
 
... कि एक झील भी थी बहुत बड़ी, बहुत शांत 
फिर बादल आये और झील झिलमिलाने लगी 

... कि  घास हरी पाँव गुदगुदा रही थी
सिहराती हवा चली और हर हरा लाल हो गया 

... सँकरी गलियाँ थी, बेचतीं बेर और गुड़ियाँ 
चुटकी बजी और सामने आ गए करोड़ों बाँस 

... कि कतरा -कतरा बिम्ब उकेरा पानी पर 
भाप उड़ी और मैने खुद को खुद में समेट लिया  

... कि एक सुन्दर रास्ता शहर से दूर ऊपर कहीं ले गया 
हज़ारों पत्थरों के बीच अचानक तथागत प्रकट हो गए 

... कि रंग, रोशनियाँ, दर्पण और दृश्य एक होकर भी एक नहीं 
 फिर भी मौन, मूक, गहन, बँधे किसी कायनात से 

... कि गीत ने भी तो कहा था कहीं - एक स्थिरता ऐसी भी 
जो नहीं बँध पाती हू-ब-हू किसी एक दृश्य में 







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