The Sun & The Water
Reminiscences from my diary
Feb 07, 2025
Friday 2345 IST
Mint, Varkala
उस साँझ
सूरज को
न जाने क्या सूझी
कि
पूरी तरह
छिपने से पहले
समंदर पर चलकर
पग-पग
मेरे पास आया
और
रेशा-रेशा छूते हुए
मेरी आँखों में भर गया
मैं
मुस्कुराया
सकुचाया
बहमाया
तुम ठहरे
तुम
तुम्हारे पते पर
कैसे रहता कोई
आँखें बहने लगीं
सूरज का उन्स
मेरे गालों पर
लुड़कने लगा
जाते-जाते
मेरा माथा चूम गया
और दे गया मेरी पीठ पर
पानी के निशान
सूरज नहीं जानता
पानी पर
पानी या उसके निशान
नहीं ठहरा करते
ख़ैर
अब मेरी देह में
तुम्हारे साथ-साथ
कहीं-कहीं
धूप भी पलती है
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