The weird metaphors of voids
Reminiscences from my diary
June 17, 2025
Tuesday 1815 IST
Murugeshpalya, Bangalore
एक रिक्तता
तुम्हारे होने पर
जैसे
विशाल मरू कोई
रेत ही रेत जहाँ तक घूमे नज़र
और उसमें डूबते
तारे, नक्षत्र और जुगनू
एक रिक्तता
तुम्हारे न होने से भी
मानो
गुनगुनी धूप में
पीर-पंजाल की पिघलती बर्फ़
और उसे चूमते
सघन देवदार
किसी एक रोज़
यूँ होगा कि
समय लेगा उबासी
ठिठकेगा
बौरायेगा, और
कर देगा सब उलट-पुलट
समय को पता है
कुछ रिक्तताओं की होती है
अपनी ही नियति
अपने ही रूपक
अपना ही व्याकरण
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