Hope
Reminiscences from my diary
Sunday June 22, 2025
2200 IST
Murugeshpalya, Bangalore
ऑटो-रिक्शा में बैठा एक आदमी
आँखें बंद किये बड़े इत्मीनान से
चिन-मुद्रा में
फुटपाथ पर दो लड़के रेस लगाते हुए
अंधाधुन्द पड़ते पाँव
झड़े हुए फूलों को कुचले बिना
सड़क किनारे खाली बेंच
थोड़ी धूप थोड़ी बारिश और एक लड़की
न फ़ोन न छाता, हाथ में बस एक किताब
एक-दूसरे के गले में हाथ डाले
तीन बच्चे, स्कूल यूनिफार्म, नंगे पाँव, भारी बस्ते
झूमते, फुदकते, दौड़ते, ठहरते
कुछ है जो बिखरा ही सही
पर बचा हुआ है
मुस्कुराता, महकता जैसे
हर साँझ रख देता हो कोई
शमी के पास
एक सुलगता लोबान
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