Monday, 2 June 2025

Monsoon

Reminiscences from my diary
June 02, 2025
Monday 2230 IST

तुम्हें होना था 

आषाढ़ की गोधूलि
साँझ, साँझ का दीया
दीये की धुनी 
धुनी के धुएँ में नाचते प्रेत 
प्रेतों की प्रार्थना 
प्रार्थनाओं के शब्द 

और होना था 

सावन की बारिश पहली 
और दूसरी 
और तीसरी 
हर फुहार, हर मूसलाधार बरसात 
बरसात की सीलन 
सीलन की गंध 

और 

भोर का लाल 
दोपहरी का अलसाया 
शाम का उन्माद 
रात का सुनसान 
दिन - दिन
हर दिन हर पहर 

तुमने चुना होना 

भादो की बयार 
कचोटती हवा 
दिशाहीन
अंतहीन 
बंजारन 
बैरागिन 
 
होना ही होगा यूँ 
इसीलिए हुआ ऐसा 
टूटते तारे 
झूठे 
झूठी ही 
पलकों वाली मन्नतें 

ख़ैर 

मेरा तुम बनना क्यूँकर हुआ
अगर तुम्हें मैं नहीं होना था ?
मुझसे होकर गुज़रना
तुम्हारा 
मुझे मौसम-मौसम 
रेशा-रेशा रीत गया  



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