Wednesday, 29 January 2025

Can you be a killer? Yes, you can!

Reminiscences from my diary

Thursday, Jan 30, 2025
Murugeshpalya, Bangalore

सुनो
अगर तुम किसी को मारना चाहते हो 
तो यूँ करो
कि उसे मरा हुआ मान लो 

काफ़ी सादी पर मज़ेदार तरकीब है 
उस पर भी -

अमुक व्यक्ति 'गर तुम्हारे उन्स में हो 
बेपनाह बेहिसाब 
तो ख़ूब  मौके मिलेंगे तुम्हें 
बिना हाथ रंगे

क़त्ल करने के 
एक बार नहीं, कई-कई बार 

सामने वाला 
सब कुछ जानते-सुहाते भी 
मरता रहेगा रोज़, तसल्ली से 
एक बार, कई बार, हर बार 

समेटअपना सारा इश्क़ 
अपनी बुशर्ट की जेब में 

और 'गर वह रोये या हँसे 
तो ग़ौर न मनाना 
चुपचाप झूठमूठ 
बहरे हो जाना 

लेकिन यूँ बताओ ज़रा 
क्या करोगे ऐसे में कि 

जब-जब तुम मारो उसे 
तब-तब लग जाए हिचकी, तुम्हें,
न एक, न दो,  मगर 
बेपनाह बेहिसाब 

मियाँ 'गर यूँ हुआ तो फिर यूँ होगा कि 
अपने जुर्म के 

तुम आप ही गवाह हो जाओगे 



Sunday, 26 January 2025

The sky and its void

Reminiscences from my diary

Jan 27, 2025
Monday 0020 IST
Murugeshpalya, Bangalore

मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि 
आसमान क्या है
किससे बना है 

बादलों से
नक्षत्रों से
देवताओं से
उनको दी जाने वाली करोड़ों पुकारों से

या फिर
अपने ही खालीपन से?

खालीपन का भी कोई नाम होता है ?
या कोई रंग? 
कैसा दिखता है? आसमान जैसा?
क्या मैं भी किसी खालीपन से बना हूँ?
क्या मेरे खालीपन का भी कोई नाम, कोई रंग है?
क्या एक ही खालीपन मुझे और आसमान दोनों को बनाता है?

सवाल हैं
यूँ ही
अजीब से 
कभी भी, कहीं से भी आ जाते हैं 

जवाब नहीं आते

एक ठंडी आह भरता हूँ 
वह जा मिलती है 
आसमान में  

बादल घिर आते हैं 
मैं फिर कुनमुना-सा हो जाता हूँ 
.. 

क्या मैं ही आसमान हूँ?



Wednesday, 25 December 2024

Japan

Reminiscences from my diary

Dec 25, 2024
Wednesday 2145 IST
Murugeshpalya, Bangalore


... कि गुनगुनी धूप में छाँव ढूँढ़कर साइकिल खड़ी की 
और एकाएक बर्फ़ गिरने लगी 

... कि पसरी पड़ी थी दिसंबर की एक दोपहरी 
और फिर बिना साँझ हुए ही रात हो गयी 

... कि एक पहाड़ था, उस पर एक आसमान कुनमुना
फिर कुनमुने आसमान पर एक-चौथाई चाँद टंक गया 
 
... कि एक झील भी थी बहुत बड़ी, बहुत शांत 
फिर बादल आये और झील झिलमिलाने लगी 

... कि  घास हरी पाँव गुदगुदा रही थी
सिहराती हवा चली और हर हरा लाल हो गया 

... सँकरी गलियाँ थी, बेचतीं बेर और गुड़ियाँ 
चुटकी बजी और सामने आ गए करोड़ों बाँस 

... कि कतरा -कतरा बिम्ब उकेरा पानी पर 
भाप उड़ी और मैने खुद को खुद में समेट लिया  

... कि एक सुन्दर रास्ता शहर से दूर ऊपर कहीं ले गया 
हज़ारों पत्थरों के बीच अचानक तथागत प्रकट हो गए 

... कि रंग, रोशनियाँ, दर्पण और दृश्य एक होकर भी एक नहीं 
 फिर भी मौन, मूक, गहन, बँधे किसी कायनात से 

... कि गीत ने भी तो कहा था कहीं - एक स्थिरता ऐसी भी 
जो नहीं बँध पाती हू-ब-हू किसी एक दृश्य में 







Wednesday, 18 December 2024

Shattered-ness

Reminiscences from my diary

Dec 19, 2024
Thursday 0015 IST
Murugeshpalya, Bangalore


वे सभी सपने जिन्हें नींद ठुकरा देती है
आँखों के नीचे गड्ढों में इकठ्ठा हो जाते हैं 

शिद्दत से टूटे दिल के टुकड़े दिखाई नहीं देते
बस साँस - साँस घुंघरू-से खनकते रहते हैं 

चाँद की परछाई कभी यूँ सी पड़ती है
हथेलियों में छाले उग आते हैं 

बंजर धूप में अकेले चलते लोगों की 
एक अलग अजब ख़ुशबू होती है 

बंद पड़े आँगनों में जब बारिश गिरती है 
देर तक डायन - सी भटकती रहती है 

होठों पर एक उदास कालिख़ ठहरी है 
तुम्हारे लिए लिखी कविताओं की राख़ है 












Thursday, 7 November 2024

The Prayers and The Sunflowers

Reminiscences from my diary
Nov 7, 2024 2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore


एक दिन यूँ होगा कि 
ब्रह्माण्ड में भटकती 

तुम्हारी और मेरी 
प्रार्थनाएँ 

कबूतरों के पंख 
बन जाएँगी 

और
 
साँकल लगे घरों के 
उजड़े आँगनों में गिरेंगीं 

एक दिन यूँ होगा कि 
ये पंख 

पंखुड़ी-पंखुड़ी बन 
बुनेंगे 

सूरजमुखी 

कि उस दिन 
और उस दिन के बाद के सभी दिन 

सूरजमुखी 
सूरज से नहीं 

सूरज सूरजमुखी की
दिशा से जाना जाएगा 






Friday, 25 October 2024

When two friends met..

Reminiscences from my diary

Oct 25, 2024
Friday 2215 IST
Murugeshpalya, Bangalore


वह
अपने सबसे अच्छे दोस्त से 
मुद्दत बाद मिलता है 

वे किस्तों में बातें करते हैं 

वह बहुत खुश है 
वह एक साँस में कई-कई बातें कहना चाहता है
वह एक साँस में कई-कई बातें पूछना चाहता है

वे किस्तों में बातें करते हैं  

सबसे अच्छा दोस्त भी खुश है
सबसे अच्छा दोस्त कम बोलता है 
सबसे अच्छा दोस्त बीच-बीच में घड़ी देखता है 

वे किस्तों में बातें करते हैं 

वह अपने सबसे अच्छे दोस्त को एकटक देखता है 
सबसे अच्छा दोस्त 'यहाँ' से 'वहाँ' नहीं जाना चाहता 
वह अपने सबसे अच्छे दोस्त का सबसे अच्छा दोस्त बनना चाहता है 

वे किस्तों में बातें करते हैं 

क्या किस्तों में बातें करने से 
दूर होने का वक़्त
बहुत दूर चला जाता है? 

 

Wednesday, 23 October 2024

My Nani

Reminiscences from my diary

Oct 23, 2024
Wednesday, 2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore


नानी 
सिर्फ़ माँ की माँ नहीं होती
 
नानी होती है

हरी अलमारी में छिपाए -
चौलाई के लड्डू 
दलिए की गर्म कटोरी में -
पिघलता गुड़ 
हैंडपंप से भरी गयी -
पानी की तीसरी बाल्टी
पौ फटने पर आँगन बुहारती - 
सींक वाली झाड़ू 
काँस के पतीले में रात भर भीगते राजमा का -
बचा-कुचा पानी 

वह होती है -

एक बेटे की सिकुड़ी टाई के सल निकालती -
लोहे की भारी इस्त्री 
दूसरी बेटी के तेल से चुपड़े बालों में -
गुंथा हुआ लाल रिबन 
छोटे नाती के कम होते जेब-खर्च में -
चुपचाप से जुड़ता पचास का नोट 
बड़ी पोती की बेस्वाद चाय में पड़ती -
चुटकी भर दालचीनी 
नाना की एक आवाज़ पर ठुमकती-ठुमकती
एक प्यारी गुड़िया  

और नानी होती है 

पूस की धूप का निवाच 
रातरानी की बिखरी गंध 
तकिये पर सिमटी नींद 
कहानियों की खोई परी 
किताबों में सहेजे बुकमार्क्स 

एक दिन अचानक 

माँ की माँ का 
होने से न हो जाना
माँ के होने और 
माँ के न होने के बीच की दीवार में
दरीचें चिन जाता है