Tuesday, 4 February 2025

Heritage

Reminiscences from my diary

Feb 04, 2025
Tuesday, 2345 IST
Murugeshpalya, Bangalore  


चार दिन की चाँदनी 
                अंधेर नगरी 
टेढ़ा आँगन 
                शैतान का घर  
खिसियानी बिल्ली 
                अकेली मछली 
छूमंतर चिड़ियाँ 
                 सफ़ेद हाथी
कागा हंस ऊँट मगर 
                आम खजूर करेला अनार 
गंगाराम की गंगा 
                भानुमती का कुनबा 
चोर और कोतवाल 
                नाचती राधा औ' नयनसुख 
अधजल गगरी 
                काठ की हाँडी 
बाँस और बाँसुरी 
                हथेली पर सरसों 
गरजते बादल 
                धूप, छाया और माया 
ज़ख़्म ज़ख़्म 
                नमक नमक 

Friday, 31 January 2025

Shards Shards Everywhere!

Reminiscences from my diary

Jan 31, 2025
Friday 2130 IST
Murugeshpalya, Bangalore


किर्चियाँ हैं 

अजीब सीं 
बहुत सारी 
बहुत ही सारी 

इधर उधर 
यहाँ वहाँ  
सिमटी हुईं, बिखरी हुईं 

ठीक ठीक नहीं पता 
हैं भी, या महज़ 
महसूस होती हैं 

बिस्तर पर 
तकिये पर 
मेज पर 

बुद्ध के स्टेचू पर 
लैंप-पोस्ट की रोशनी में 
बिखरी किताबों के आस-पास 

डायरी में 
घड़ियों में 
कैलेंडर की तारीखों पर 

खिड़की के पर्दों पर 
चौखट के ऊपर 
दरवाज़े की ओट में 

मनीप्लान्ट पर ठहरे पानी में 
मोगरे की मिट्टी में 
उजड़े गुड़हल की गंध में 

मंदिर में 
देवताओं की तस्वीरों पर 
प्रार्थनाओं की चुप में 

आँख नोचती धूप में 
सिर से गुज़रते आसमान में 
साँस में, साँस -साँस में 

होठों पर 
नाखूनों में 
छाती के अंदर कहीं 

घाव-घाव घुसती 
पोर-पोर पिरती 
रेशा-रेशा रिसती 

किर्चियाँ 
किर्चियाँ 

!!




Wednesday, 29 January 2025

Can you be a killer? Yes, you can!

Reminiscences from my diary

Thursday, Jan 30, 2025
Murugeshpalya, Bangalore

सुनो
अगर तुम किसी को मारना चाहते हो 
तो यूँ करो
कि उसे मरा हुआ मान लो 

काफ़ी सादी पर मज़ेदार तरकीब है 
उस पर भी -

अमुक व्यक्ति 'गर तुम्हारे उन्स में हो 
बेपनाह बेहिसाब 
तो ख़ूब  मौके मिलेंगे तुम्हें 
बिना हाथ रंगे

क़त्ल करने के 
एक बार नहीं, कई-कई बार 

सामने वाला 
सब कुछ जानते-सुहाते भी 
मरता रहेगा रोज़, तसल्ली से 
एक बार, कई बार, हर बार 

समेटअपना सारा इश्क़ 
अपनी बुशर्ट की जेब में 

और 'गर वह रोये या हँसे 
तो ग़ौर न मनाना 
चुपचाप झूठमूठ 
बहरे हो जाना 

लेकिन यूँ बताओ ज़रा 
क्या करोगे ऐसे में कि 

जब-जब तुम मारो उसे 
तब-तब लग जाए हिचकी, तुम्हें,
न एक, न दो,  मगर 
बेपनाह बेहिसाब 

मियाँ 'गर यूँ हुआ तो फिर यूँ होगा कि 
अपने जुर्म के 

तुम आप ही गवाह हो जाओगे 



Sunday, 26 January 2025

The sky and its void

Reminiscences from my diary

Jan 27, 2025
Monday 0020 IST
Murugeshpalya, Bangalore

मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि 
आसमान क्या है
किससे बना है 

बादलों से
नक्षत्रों से
देवताओं से
उनको दी जाने वाली करोड़ों पुकारों से

या फिर
अपने ही खालीपन से?

खालीपन का भी कोई नाम होता है ?
या कोई रंग? 
कैसा दिखता है? आसमान जैसा?
क्या मैं भी किसी खालीपन से बना हूँ?
क्या मेरे खालीपन का भी कोई नाम, कोई रंग है?
क्या एक ही खालीपन मुझे और आसमान दोनों को बनाता है?

सवाल हैं
यूँ ही
अजीब से 
कभी भी, कहीं से भी आ जाते हैं 

जवाब नहीं आते

एक ठंडी आह भरता हूँ 
वह जा मिलती है 
आसमान में  

बादल घिर आते हैं 
मैं फिर कुनमुना-सा हो जाता हूँ 
.. 

क्या मैं ही आसमान हूँ?



Wednesday, 25 December 2024

Japan

Reminiscences from my diary

Dec 25, 2024
Wednesday 2145 IST
Murugeshpalya, Bangalore


... कि गुनगुनी धूप में छाँव ढूँढ़कर साइकिल खड़ी की 
और एकाएक बर्फ़ गिरने लगी 

... कि पसरी पड़ी थी दिसंबर की एक दोपहरी 
और फिर बिना साँझ हुए ही रात हो गयी 

... कि एक पहाड़ था, उस पर एक आसमान कुनमुना
फिर कुनमुने आसमान पर एक-चौथाई चाँद टंक गया 
 
... कि एक झील भी थी बहुत बड़ी, बहुत शांत 
फिर बादल आये और झील झिलमिलाने लगी 

... कि  घास हरी पाँव गुदगुदा रही थी
सिहराती हवा चली और हर हरा लाल हो गया 

... सँकरी गलियाँ थी, बेचतीं बेर और गुड़ियाँ 
चुटकी बजी और सामने आ गए करोड़ों बाँस 

... कि कतरा -कतरा बिम्ब उकेरा पानी पर 
भाप उड़ी और मैने खुद को खुद में समेट लिया  

... कि एक सुन्दर रास्ता शहर से दूर ऊपर कहीं ले गया 
हज़ारों पत्थरों के बीच अचानक तथागत प्रकट हो गए 

... कि रंग, रोशनियाँ, दर्पण और दृश्य एक होकर भी एक नहीं 
 फिर भी मौन, मूक, गहन, बँधे किसी कायनात से 

... कि गीत ने भी तो कहा था कहीं - एक स्थिरता ऐसी भी 
जो नहीं बँध पाती हू-ब-हू किसी एक दृश्य में 







Wednesday, 18 December 2024

Shattered-ness

Reminiscences from my diary

Dec 19, 2024
Thursday 0015 IST
Murugeshpalya, Bangalore


वे सभी सपने जिन्हें नींद ठुकरा देती है
आँखों के नीचे गड्ढों में इकठ्ठा हो जाते हैं 

शिद्दत से टूटे दिल के टुकड़े दिखाई नहीं देते
बस साँस - साँस घुंघरू-से खनकते रहते हैं 

चाँद की परछाई कभी यूँ सी पड़ती है
हथेलियों में छाले उग आते हैं 

बंजर धूप में अकेले चलते लोगों की 
एक अलग अजब ख़ुशबू होती है 

बंद पड़े आँगनों में जब बारिश गिरती है 
देर तक डायन - सी भटकती रहती है 

होठों पर एक उदास कालिख़ ठहरी है 
तुम्हारे लिए लिखी कविताओं की राख़ है 












Thursday, 7 November 2024

The Prayers and The Sunflowers

Reminiscences from my diary
Nov 7, 2024 2245 IST
Murugeshpalya, Bangalore


एक दिन यूँ होगा कि 
ब्रह्माण्ड में भटकती 

तुम्हारी और मेरी 
प्रार्थनाएँ 

कबूतरों के पंख 
बन जाएँगी 

और
 
साँकल लगे घरों के 
उजड़े आँगनों में गिरेंगीं 

एक दिन यूँ होगा कि 
ये पंख 

पंखुड़ी-पंखुड़ी बन 
बुनेंगे 

सूरजमुखी 

कि उस दिन 
और उस दिन के बाद के सभी दिन 

सूरजमुखी 
सूरज से नहीं 

सूरज सूरजमुखी की
दिशा से जाना जाएगा